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जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
मृत्यु में ही जीवन का अन्त होता है, उनकी गति अपने कर्म के अनुसार होगी, पुण्य-पाप के फल से, पाप करने से नरक को, पुण्य करने से सुगति को, इसलिए सदा पुण्य कर्म करे जिससे परलोक बनता है। अपना कमाया पुण्य ही प्राणियों के लिए परलोक में आधार होता है । ' बौद्ध दर्शन की यह निश्चित मान्यता है कि सत्त्व (प्राणी) अनेक जन्मों में संसरण कर, अपने कर्मों का भोग करता है ।" उसमें भी वर्त्तमान जीवन के कर्मफल का सम्बन्ध भावी जन्मों में माना गया है। इस दृष्टि से उसमें तीन प्रकार के कर्म माने गए हैं- (1) दृष्टधर्म - वेदनीय- इसी जन्म में फल देनेवाला, (2) उपपद्य-वेदनयी - अगले जन्म में फल देने वाला, (3) अपरपर्यायवेदनीय - अगले जन्म के पश्चात् किसी भी जन्म में फल देनेवाला ।° बौद्ध दर्शन में भी जैनदर्शन के समान योनियाँ मानी गई हैं। बौद्ध दर्शन में इन्हें भूमियाँ कहा गया है। ये भूमियाँ चार हैं- (1) अपायभूमि ( दुर्गतियाँ - नारक, तिर्यंच, प्रेत और असुर), (2) कामसुगतभूमि (सुगतियाँ- मनुष्य और कुछ देव जातियाँ), (3) रूपावचरभूमि (विशिष्ट देव जातियाँ) और (4) अरूपावचरभूमि ।" बौद्ध दर्शन में जैन- दर्शन की चारों गतियाँ स्वीकृत हैं। नैतिकविकास के आधार पर इनके अनेक भेद दोनों ही दर्शनों में मान्य हैं, उनमें नाम - वर्गीकरण के दृष्टिकोण आदि में भी बहुत कुछ समानता है। ध्यान रखने योग्य एक विशेष बात यह है कि जहाँ बौद्ध दर्शन में कुछ विशिष्ट देव-योनियों से सीधे निर्वाण की प्राप्ति को सम्भव माना गया है, वहाँ जैन- दर्शन केवल मनुष्य जन्म से निर्वाण की उपलब्धि सम्भव मानता है । क्या बौद्ध - अनात्मवाद पुनर्जन्म की व्याख्या कर सकता है ?
सामान्यतया, विपक्षी विचारकों ने बौद्ध-धर्म के अनात्मवाद और क्षणिकवाद को पुनर्जन्म की व्याख्या की दृष्टि से असंगत माना है, लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। आचार्य नरेन्द्रदेव लिखते हैं, 'नैरात्म्यवाद से पुनर्जन्म और कर्म के प्रति उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को क्षति नहीं पहुँचती । आत्मा की प्रतिज्ञा करना भूल है, सन्तति का उल्लेख करना चाहिए । ' 42 अनात्मवाद या क्षणिकवाद के साथ पुनर्जन्म का सिद्धान्त कैसे संगत हो सकता है, इसकी विवेचना भदन्त नागसेन ने राजा मिलिन्द के सामने की थी। जब मिलिन्द ने नागसेन से अनात्मवाद एवं क्षणिकवाद की विवेचना सुनी, तो उनके हृदय में भी पुनर्जन्म की असम्भावना की शंका उठ खड़ी हुई। उन्होंने नागसेन से समाधान के लिए प्रश्न किया, भन्ते नागसेन ! कौन उत्पन्न होता है ( पुनर्जन्म ग्रहण करता है) ? क्या वह वही रहता है, या अन्य हो जाता है ? नागसेन ने उत्तर दिया, न तो वही और न अन्य। जैसे एक युवक वृद्ध होने तक न तो वही रहता है और न अन्य हो जाता है, वैसे जो पुनर्जन्म ग्रहण करता है, वह न तो वही रहता है, न अन्य हो जाता है। मिलिन्द फिर भी सन्तुष्ट न हो सका। उसने यह जानना चाहा कि वह क्या है, जो पुनर्जन्म ग्रहण करता है ? नागसेन ने इसके उत्तर में स्पष्ट किया कि यह नाम
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