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________________ आत्मा की अमरता 287 अथवा जन्मना ऐन्द्रिक एवं बौद्धिक क्षमता से युक्त होता है और क्यों दूसरा दरिद्र एवं हीन कुल में जन्म लेता है और जन्मना हीनेन्द्रिय एवं बौद्धिक-दृष्टि से पिछड़ा हुआहोता है ? क्यों एक प्राणी को मनुष्य-शरीर मिलता है और दूसरे को पशु-शरीर मिलता है ? यदि इसका कारण ईश्वरेच्छा है, तो ईश्वर अन्यायी सिद्ध होता है। दूसरे, व्यक्ति को अपनी अक्षमताओं और उनके कारण उत्पन्न अनैतिक-कृत्यों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकेगा। खानाबदोश जातियों में जन्म लेने वाला बालक संस्कारवश जो अनैतिक-आचरण का मार्ग अपनाता है, उसका उत्तरदायित्व किस पर होगा ? वैयक्तिक-विभिन्नताएँ ईश्वरेच्छा का परिणाम नहीं, वरन् व्यक्ति के अपने ही कृत्यों का परिणाम हैं। वर्तमान जीवन में जो भी क्षमता एवं अवसरों की सुविधा उसे अनुपलब्ध है और जिनके फलस्वरूप उसे नैतिकविकास का अवसर प्राप्त नहीं होता है, उनका कारण भी वह स्वयं ही है और उसका उत्तरदायित्व भी उसी पर है। 2. नैतिक-विकास केवल एक जन्म की साधना का परिणाम नहीं है, वरन् उसके पीछे जन्म-जन्मान्तर की साधना होती है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्राणी को नैतिक-विकास के हेतु अनन्त अवसर प्रदान करता है। ब्रैडले नैतिक-पूर्णता की उपलब्धि को अनन्त प्रक्रिया मानते हैं। यदि नैतिकता आत्मपूर्णता एवं आत्मसाक्षात्कार की दिशा में सतत प्रक्रिया है, तो फिर बिना पुनर्जन्म के इस विकास की दिशा में आगे कैसे बढ़ा जा सकता है ? गीता में भी नैतिक-पूर्णताकी उपलब्धि के लिए अनेक जन्मों की साधना आवश्यक मानी गई है। डॉ. टाँटिया भी लिखते हैं कि यदिआध्यात्मिक-पूर्णता (मुक्ति) एक तथ्य है, तो उसके साक्षात्कार के लिए अनेक जन्म आवश्यक हैं।'33 3. साथ ही, आत्मा के बन्धन के कारण की व्याख्या के लिए भी पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार करनाहोगा, क्योंकि वर्तमान बन्धन की अवस्थाका कारणभूतकालीन जीवन में ही खोजा जा सकता है। 4. जो नैतिक-दर्शन पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करते, वे व्यक्ति के साथ समुचित न्याय नहीं करते। अपराध के लिए दण्ड आवश्यक है, लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि विकास या सुधार काअवसर ही समाप्त कर दिया जाए। जैन-नैतिकता पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करके व्यक्ति को नैतिक-विकास के अनेक अवसर प्रदान करती है तथा अपने को एक प्रगतिशील नैतिक-दर्शन सिद्ध करती है। पुनर्जन्म की धारणा दण्ड के सुधारवादी सिद्धान्त का समर्थन करती है, जबकि पुनर्जन्म को नहीं माननेवाली नैतिक-विचारणाएँ दण्ड के बदला लेने के सिद्धान्त का समर्थन करती हैं, जोकि वर्तमान युग में एक परम्परागत अनुचित धारणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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