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जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
मनोरंजनात्मक-मूल्य कामपुरुषार्थ के, साहचर्यात्मक और चारित्रिक-मूल्य धर्मपुरुषार्थ के तथा सौन्दर्यात्मक, ज्ञानात्मक और धार्मिक-मूल्य मोक्षपुरुषार्थ के तुल्य हैं। 12. भारतीय-दर्शनों में जीवन के चार मूल्य
जिस प्रकार पाश्चात्य-आचारदर्शन में मूल्यवाद का सिद्धान्त लोकमान्य है, उसी प्रकार भारतीय नैतिक-चिन्तन में पुरुषार्थ-सिद्धान्त, जो कि जीवन-मूल्यों का ही सिद्धान्त है, पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। भारतीय-विचारकों ने जीवन के चार पुरुषार्थ या मूल्य माने हैं___1. अर्थ (आर्थिक-मूल्य)- जीवन-यात्रा के निर्वाह के लिए भोजन, वस्त्र, आवास आदि की आवश्यकता होती है; अत: दैहिक-आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले इन साधनों को उपलब्ध करना ही अर्थपुरुषार्थ है।
2.काम (मनोदैहिक-मूल्य)-जैविक-आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन जुटाना अर्थपुरुषार्थ और उन साधनों का उपभोग करना काम-पुरुषार्थ है। दूसरे शब्दों में, विविध इन्द्रियों के विषयों का भोग कामपुरुषार्थ है।
3. धर्म (नैतिक-मूल्य)- जिन नियमों के द्वारा सामाजिक-जीवन या लोकव्यवहार सुचारु रूप से चले, स्व-पर कल्याण हो और जो व्यक्ति को आध्यात्मिकपूर्णता की दिशा में ले जाए, वह धर्मपुरुषार्थ है।
4. मोक्ष (आध्यात्मिक-मूल्य)- आध्यात्मिक-शक्तियों का पूर्ण प्रकटीकरण मोक्ष है। 1. जैन-दृष्टि में पुरुषार्थचतुष्टय
__ सामान्यतया, यह समझा जाता है निवृत्तिप्रधान जैन-दर्शन में मोक्ष ही एकमात्र पुरुषार्थ है। धर्म-पुरुषार्थ की स्वीकृति उसके मोक्षानुकूल होने में ही है। अर्थ और कामइन दो पुरुषार्थों का उसमें कोई स्थान नहीं है। जैनविचारकों के अनुसार अर्थ अनर्थ का मूल है,110 सभी काम दु:ख उत्पन्न करने वाले हैं, लेकिन यह विचार एकांगी ही माना जाएगा। कोई भी जिनवचन एकान्त या निरपेक्ष नहीं है। जैन-विचारकों ने सदैव ही व्यक्ति को स्वपुरुषार्थ से धनोपार्जन की प्रेरणा दी है। वे यह मानते हैं कि व्यक्ति को केवल अपने पुरुषार्थ से उपार्जित सम्पत्ति के भोग करने का अधिकार है। दूसरों के द्वारा उपार्जित सम्पत्ति के भोग करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। गौतमकुलक में कहा गया है कि पिता के द्वारा उपार्जित लक्ष्मी निश्चय ही पुत्र के लिए बहन होती है और दूसरों की लक्ष्मी परस्त्री के समान होती है, दोनों का ही भोग वर्जित है, अत: स्वयं अपने पुरुषार्थ से धन का उपार्जन करके ही उसका भोग करना न्यायसंगत है। 112 जैनाचार्यों ने विभिन्न वर्ण के लोगों को किन-किन साधनों से धनार्जन करना चाहिए, इसका भी निर्देश किया है। ब्राह्मणों को मुख (विद्या) से, क्षत्रियों को असि (रक्षण) से, वणिकों
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