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________________ भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त दृष्टिकोण थोड़ा भिन्न है, क्योंकि जैन - परम्परा व्यक्तिवाद के अधिक निकट है। अरबन के अनुसार स्वहित और परहित की समस्या का सही समाधान न तो परिष्कारित स्वहितवाद में है और न बौद्धिक - परहितवाद में है, वरन् सामान्य शुभ की उपलब्धि के रूप में स्वहित और परहित से ऊपर उठ जाने में है। यह दृष्टिकोण जैन-परम्परा में भी ठीक इसी रूप में स्वीकृत रहा है। जैन परम्परा भी स्वहित और लोकहित की सीमाओं से ऊपर उठ जाना ही नैतिक जीवन का लक्ष्य मानती है। - अरबन इस समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करते हैं कि मूल्यांकन करने वाली मानवीय चेतना के द्वारा यह कैसे जाना जाए कि कौन-से मूल्य उच्च कोटि के हैं और कौन मूल्य निम्न कोटि के ? अरबन इसके तीन सिद्धान्त बताते हैं - - पहला सिद्धान्त यह है कि साध्यात्मक या आन्तरिक मूल्य साधनात्मक या बाह्य मूल्यों की अपेक्षा उच्च हैं। दूसरा सिद्धान्त यह है कि स्थायी मूल्य अस्थायी मूल्यों की अपेक्षा उच्च हैं और तीसरा सिद्धान्त यह है कि उत्पादक- मूल्य अनुत्पादक - मूल्यों की अपेक्षा उच्च हैं। 193 अरबन इन्हें व्यावहारिक-विवेक के सिद्धान्त या मूल्य के नियम कहते हैं। ये हमें बताते हैं कि आंगिक - मूल्य, जिनमें आर्थिक, शारीरिक और मनोरंजनात्मक मूल्य समाहित हैं, की अपेक्षा सामाजिक मूल्य, जिनमें साहचर्य और चारित्र के मूल्य भी समाहित हैं, उच्च प्रकार के हैं । उसी प्रकार, सामाजिक मूल्यों की अपेक्षा आध्यात्मिक मूल्य, जिनमें बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक और धार्मिक मूल्य भी समाहित हैं, उच्च प्रकार के हैं। अरबन की दृष्टि में मूल्यों की इसी क्रम अवस्था के आधार पर आत्मसाक्षात्कार के स्तर हैं। आत्मसाक्षात्कार के लिए प्रस्थित आत्मा की पूर्णता उस स्तर पर है, जिसे मूल्यांकन करने वाली चेतना सर्वोच्च मूल्य समझती है और सर्वोच्च मूल्य वह है, जो अनुभूति की पूर्णता में तथा जीवन के सम्यक् संचालन में सबसे अधिक योगदान करता है। जैन- दृष्टि में इसे वीतरागता और सर्वज्ञता की अवस्था कह सकते हैं। एक अन्य आध्यात्मिक मूल्यवादी विचारक डब्ल्यू. आर. सार्ली जैन - परम्परा के निकट आकर यह कहते हैं कि नैतिक- पूर्णता ईश्वर के समान बनने में है, किन्तु जैनपरम्परा इससे भी आगे बढ़कर यह कहती है कि नैतिक- पूर्णता परमात्मा बनने में ही है। आत्मा से परमात्मा, जीव से जिन, साधक से सिद्ध, अपूर्ण से पूर्ण की उपलब्धि में ही नैतिक जीवन की सार्थकता है। Jain Education International अरबन की मूल्यों की क्रम-व्यवस्था भी जैन-परम्परा के दृष्टिकोण के निकट ही है। जैन एवं अन्य भारतीय - दर्शनों में भी अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष- पुरुषार्थों में यही क्रम स्वीकार किया गया है। अरबन के आर्थिक मूल्य अर्थपुरुषार्थ के, शारीरिक एवं - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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