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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
सकता है। एक अन्य अपेक्षा से भी इस सूत्र का यह भी आशय निकाला जा सकता है कि व्यक्ति का नैतिक-विकास और पतन स्वयं उसी पर निर्भर है। इस अर्थ में यह सिद्धान्त नैतिक-जीवन में पुरुषार्थ की धारणा पर बल देता है और यह जैन-दर्शन में भी स्वीकृत है। जैन-आचारदर्शन का स्पष्ट मन्तव्य है कि व्यक्ति का हित और अहित स्वयं उसी पर निर्भर है।
कांट के स्वतन्त्रता के सूत्र की व्याख्या यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त है, अत: जिसे हम अपना अधिकार मानते हैं, उसे ही दूसरों का भी अधिकार मानना चाहिए। यदि हम चोरी करते समय दूसरों की सम्पत्ति पर अपना अधिकार मानते हैं, तो दूसरों को भी यह अधिकार प्राप्त है कि वे आपकी सम्पत्ति पर अपना अधिकार मानकर उसका उपभोग करें। इस प्रकार, यह सूत्र समान अधिकार की बात कहता है, जो कि प्रथम सूत्र से अधिक भिन्न नहीं है। यह सूत्र भी सबको अपने समान समझने का आदेश है और इस रूप में वह आत्मवत्-दृष्टि का ही प्रतिपादक है।
कांट का साध्यों के राज्य का सूत्र यह बताता है कि सभी मनुष्यों को समान मूल्यवाला समझो और इस अर्थ में यह सिद्धान्त लोकप्रिय या लोकसंग्रह का प्रतिपादक है तथा पारस्परिक सहयोग तथा पूर्ण सामञ्जस्य के साथ कर्म करने का निर्देश देता है। इसमें भी आत्मवत्-दृष्टि का भाव सन्निहित है। इस सूत्र में प्रतिपादित सभी विचार जैन तथा अन्य भारतीय-दर्शनों में उपलब्ध हैं। 4. पूर्णतावाद और जैन-दर्शन
पूर्णतावाद का सिद्धान्त नैतिक-साध्य के रूप में आत्मा के विभिन्न पक्षों की पूर्णता को स्वीकार करता है। सुखवाद आत्मा के भावनात्मक पक्ष को नैतिक-जीवन का साध्य बताता है, जबकि बुद्धिवाद आत्मा के बौद्धिक-पक्ष को ही नैतिकता का साध्य मानता है। सुखवाद और बुद्धिवाद के एकांगी दृष्टिकोणों से ऊपर उठकर पूर्णतावाद भावनात्मक-आत्मा और बौद्धिक-आत्मा-दोनों को ही नैतिक-जीवन का साध्य मानता है। नैतिकता समग्र आत्मा की सिद्धि है, उस आत्मा की, जो कि बुद्धिमय भी है और भावनामय भी। वह आत्मा के विभिन्न पक्षों को नहीं, वरन् पूर्ण आत्मा को नैतिक-जीवन का साध्य बनाता है। वह आत्मिक-क्षमताओं के पूर्ण विकास की धारणा को स्थापित करता है। पूर्णतावाद का एक प्राचीन रूप ईसा के उस कथन में मिलता है, जिसमें कहा गया है कि 'तुम वैसे ही पूर्ण हो जाओ, जैसे स्वर्ग में तुम्हारा पिता है।' हेगेल ने भी अपने दर्शन की मुख्य शिक्षा पूर्ण व्यक्ति बनो' के रूप में दी है। हेगेल के दृष्टिकोण का ही विकास करने वाले पूर्णतावादी विचारकों में कियर्ड, ग्रीन, क्रैडले एवं बोसाके प्रमुख हैं। समकालीन पूर्णतावादी विचारकों में पेटन और म्यूरहेड आते हैं। ब्रैडले अपने पूर्णतावाद
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