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बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के आचार-नियमों से तुलना की गई है। अठारहवें अध्याय में आध्यात्मिक और नैतिक-विकास की चर्चा की गई है और इस सम्बन्ध में जैन-परम्परा के गुणस्थान-सिद्धान्त की बौद्ध-परम्परा की विकासात्मक भूमियों और गीता के त्रिगुण सिद्धान्त से तुलना की गई है। अन्तिम उन्नीसवें अध्याय में जैन-आचार का प्राचीन एवं अर्वाचीन संदर्भो में मूल्यांकन किया गया है। कृतज्ञताज्ञापन
प्रस्तुत गवेषणा में जिन महापुरुषों, विचारकों, लेखकों, गुरुजनों एवं मित्रों का सहयोग रहा है, उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनीत कर्त्तव्य समझता हूँ।
कृष्ण, बुद्ध और महावीर एवं अनेकानेक ऋषि-महर्षियों के उपदेशों की यह पवित्र धरोहर, जिसे उन्होंने अपनी प्रज्ञा एवं साधना के द्वारा प्राप्त कर मानव-कल्याण के लिए जन-जन में प्रसारित किया था, आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक है और हम उनके प्रति श्रद्धानवत हैं।
लेकिन, महापुरुषों के ये उपदेश आज देववाणी संस्कृत, पालिएवं प्राकृत में जिस रूप में हमें संकलित मिलते हैं, हम इनके संकलनकर्ताओं के प्रति आभारी हैं, जिनके परिश्रम के फलस्वरूप वह पवित्र थाती सुरक्षित रहकर आज हमें उपलब्ध हो सकी है।
सम्प्रति युग के उन प्रबुद्ध विचारकों के प्रति भी आभार प्रकट करना आवश्यक है, जिन्होंने बुद्ध, महावीर और कृष्ण के मन्तव्यों को युगीन सन्दर्भ में विस्तारपूर्वक विवेचित एवं विश्लेषित किया है। इस रूप में जैन-दर्शन के मर्मज्ञ पं. सुखलालजी, उपाध्याय अमरमुनि जी, मुनि नथमलजी, प्रो. दलसुखभाई मालवणिया, बौद्धदर्शन के अधिकारी विद्वान् धर्मानन्द कौसम्बी एवं अन्य अनेक विद्वानों एवं लेखकों का भी मैं आभारी हूँ, जिनके साहित्य ने मेरे चिन्तन को दिशा-निर्देश दिया है। ____ मैं जैन-दर्शन पर शोध करने वाले डॉ. टाटिया, डॉ. इन्द्रचन्द्र शास्त्री, डॉ. पद्म राजे, डॉ. मोहनलाल मेहता, डॉ. कलघटगी, डॉ. कमलचन्द सोगानी एवं डॉ. दयानन्द भार्गव आदि उन सभी विद्वानों का भी आभारी हूँ, जिनके शोध-ग्रन्थों ने मुझे न केवल विषय
और शैली के समझने में मार्गदर्शन दिया, वरन् जैन ग्रन्थों के अनेक महत्वपूर्ण सन्दर्भो को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध भी कराया है। इन सबके अतिरिक्त में विभिन्न पत्रपत्रिकाओं के उन लेखकों के प्रति भी आभारी हूँ, जिनके विचारों से प्रस्तुत गवेषणा में लाभान्वित हुआ हूँ।
प्रो. सी.पी. ब्रह्मों एवं डॉ. सदाशिव बनर्जी का भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ, जिनकी आत्मीयता, सहयोग एवं निर्देशन से लाभान्वित हुआहूँ और जिनका मृदु, निश्छलएवं सरल स्वभाव सदैव ही उनके प्रति मेरी श्रद्धा का केन्द्र रहा है। मित्रवर डॉ. अशोककुमार लाड एवं
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