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तृतीय आर्य सत्य है दुख का विनाश सम्भव है क्योंकि वह सहेतुक है तृष्णा के क्षयरूप है निर्वाण अनिर्वचनीय वर्णातीत दुख से मुक्ति का, निर्वाण की प्राप्ति का, मार्ग है अष्टांगिक इसी मार्ग पर चलकर व्यक्ति मुक्ति पा सकता है। यही है चतुर्थ आर्य सत्य
अनुभूति एवं दर्शन / 49
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