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बौद्ध दर्शन
बौद्ध दर्शन के हैं प्रणेता
भगवान बुद्ध उनकी चिंतनधारा कहती है
ईश्वर की कोई सत्ता नहीं ईश्वर जगत का स्रष्टा भी नहीं सम्पूर्ण विश्व
कार्य कारण की
एक व्यवस्था है
उत्पत्ति और विनाश के स्वाभाविक नियम से
संचालित है
सत्ता स्वभावतः
अनित्य और परिवर्तनशील है शाश्वत आत्मा में विश्वास भ्रामक है
चित्त - संतति का प्रवाह ही आत्मा की भ्रान्ति कराता है। शरीर, मन आदि पंचस्कन्धों का संकलन मात्र है आत्मा अतः निरपेक्ष कोई चैतन्य सत्ता नहीं
सत्ता सतत् परिवर्तनशीन है
और आत्मा भी चित्त धारा का एक प्रवाह है
बुद्ध कहते है
चार आर्य सत्य है
संसार दुखमय है यह प्रथम सत्य किन्तु यह दुख भी अकारण नहीं दुःख का कारण ही है द्वितीय आर्य सत्य
अनुभूति एवं दर्शन / 48
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