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मुक्ति
मैं मुक्ति हूँ कषाय रूपी ज्वर के उतरने पर प्रकट हुई पूर्ण ज्ञानमय अनिर्वचनीय आनन्दमय स्व के सम्पूर्ण अस्तित्त्व के साथ प्रकट हुई विक्षोभों से रहित सदा अविचल जन्म-जरा-मरण की सरहद के पार वहाँ न चाह है
और न चिन्ता है वहाँ कुछ भी नहीं किन्तु सब कुछ तो है अब कुछ पाना नहीं पाया है जो वह खोना नहीं यही तो मुक्ति है
अनुभूति एवं दर्शन / 4
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