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स्वलक्षण उसका नित्य पक्ष तो परिवर्तनशील पर्याय ही उसका अनित्य पक्ष है
मृत्तिका स्वलक्षण का परित्याग किये बिना भी घट अवस्था को प्राप्त हुई घट की उत्पत्ति में
पिण्ड अवस्था का
नाश हुआ फिर भी मृत्तिका तो
यथावत बनी रही
इस सत्य को स्वीकारने में भला किसी को
क्या हो सकती परेशानी है सत् के स्वरूप को समझने और समझाने की बस यही एक कहानी है
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अनुभूति एवं दर्शन / 42
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