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इस व्याप्ति ज्ञान के आधार पर होता है जब दूसरा ज्ञान प्रत्यक्ष से परोक्ष का साधन से साध्य का यही है अनुमान प्रमाण स्वार्थ और परार्थ जिसके दो हैं प्रकार अविनाभाव संबंध वाले साधन से साध्य का हो जब ज्ञान, तब होता है स्वार्थानुमान
दूसरों को बतलाने के लिए वचन के उपचार से होता है परार्थ अनुमान। प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण उपनय और निगमन ये पाँच हैं इसके अंग। साध्य का निर्देश करना ही प्रतिज्ञा है, साध्य की सिध्दि का साधन हेतु कहलाता है, साधन के सद्भाव में साध्य का सद्भाव अन्वय हेतु है साध्य के अभाव में साधन का अभाव व्यतिरेक हेतु है असिध्द, विरूद्ध, अनैकान्तिक यह तीन हेत्वाभास कहलाते हैं
अनुभूति एवं दर्शन / 35
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