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अपूर्वकरण आठवाँ गुणस्थान है उपशम और क्षपक दो श्रेणी यहाँ से होती प्रारंभ है आठवें गुणस्थान के तीनों काल के जीवों के अध्यवसायों की जब हो तुलना असमानता होने के कारण निवृत्तिकरण इसका दूसरा नाम है।
भाव होते जब अधिक विशुद्ध हैं अध्यवसाय भी प्रथम समय में होते हैं समान तब होता है नौवाँ अनिवृत्ति गुणस्थान। सूक्ष्म लोभ का मात्र रहता उदय दसवें सूक्ष्म संपराय गुणस्थान में है जघन्य से एक समय उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त आठवें नौवें दसवें गुणस्थानों का काल है संसार चक्र में नौ बार एक भव-चक्र में चार बार अधिकतम इन तीनों गुणस्थानों की प्राप्ति संभव है
उपशम श्रेणी वालों का ही जहाँ होता प्रवेश है मोहनीय कर्म पूर्ण उपशान्त किन्तु सत्ता में फिर भी है विद्यमान नियम से होता यहाँ से पतन गिरते हुए पहले तक भी पहुँच जाता जिस गुणस्थानक पर वह रूकता है वहाँ के बंध, उदय, उदीरणा को कर देता प्रारंभ है जघन्य से एक समय उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त ग्यारवें उपशान्त मोह गुणस्थानक का काल है
अनुभूति एवं दर्शन / 12
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