SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रति पूरी तरह ईमानदार रहे है। हिन्दू परम्परा के योगवंशिष्ठ में योग-साधना की तीन स्थितियाँ है- 1. सम्पूर्ण समर्पण 2. मानसिक शांति और 3. शरीर तथा मन की क्रियाओं का पूर्ण निरोध। हरिभद्र ने भी अपने योगदृष्टिसमुच्चय में जिन तीन योगों का उल्लेख किया है- 1. इच्छायोग 2. शास्त्रयोग और 3. सामर्थ्ययोग- वे जैनों के त्रिरत्न पर आधारित है। इनमें से इच्छायोग-सम्पूर्ण समर्पण के समान है क्योंकि इसके अन्त में अपनी कोई इच्छा बचती ही नहीं है और सामर्थ्य योग योगवाशिष्ठ की अन्य दो स्थितियों मानसिक शांति तथा शरीर मन की संपूर्ण क्रियाओं के निरोध के समान है। योगबिन्दु में हरिभद्र ने योग के निम्न प्रकार बताए है आध्यात्मयोग (spiritualism)- आध्यात्मिकता भावनायोग (contemplation)- धारणा ध्यानयोग (meditation)- ध्यान 4. समतायोग (equanimity of mind)- मन की समता स्थिति 5: वृत्तिसंक्षययोग (ceasetion of all activties of mind, body and speech) मन, वाणी और शरीर की सब क्रियाओं का निरोधयोग के इन पाँच भेदों में आध्यात्मयोग को अन्य योगपद्धतियों में “महायोग" के रूप में मान्य किया गया है। भावना और ध्यान की अवधारणाएँ हिन्दू योगपद्धति में भी है। समतायोग और वृत्तिसंक्षय-योग जैसा कि हम देख ही चुके है, ये दोनों योग योगवाशिष्ठ में भी उल्लेखित है और वृत्तिसंक्षय-योग, लय-योग के अन्तर्गत आता है। हरिभद्र ने अपनी योगविंशिका में जो चार प्रकार के योग बताए है- 1. आसन (शरीर की स्थिति विशेष body- posture) 2. ऊर्ण (मंत्रोच्चारण-recitation of mantr) 3. आलंबन और 4. अनालंबन। आसन की अवधारणा पतंजलि के योगसूत्र में भी विद्यमान है। इसी तरह ऊर्ण को हिन्दू योगपद्धति में मंत्रयोग या जपयोग के रूप में माना गया है और इसी तरह आलंबन को भक्तियोग तथा अनालंबन को लययोग के रूप में बताया गया है। इसीप्रकार हरिभद्र द्वारा आठ योगदृष्टियों की व्यवस्था भी पतंजलि के अष्टांग योग के आधार पर की गई हैं। यद्यपि हरिभद्र ने इन विभिन्न अवधारणाओं को बौद्ध तथा हिन्दू तन्त्र पद्धतियों से लिया है, किन्तु उनकी विशेषता यह है कि उन्होंने इनको जैन समत्वयोग और अन्य योग : 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003605
Book TitleSamatva Yoga aur Anya Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy