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________________ of conciousness or a state of self absorption ) सामान्य रूप से सामायिक शब्द का अर्थ है - ऐसा विशिष्ट आध्यात्मिक अभ्यास, जिसके द्वारा व्यक्ति चित्त की स्थिरता को प्राप्त कर सके ( particular religious practice through which one can attain equanimity of mind) । यह अपने आप में एक साध्य के साथ साथ साधना भी हैं । साधना के रूप में यह चित्त की निर्विकल्प स्थिति को प्राप्त करने का अभ्यास है और साध्य के रूप में यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति वैकल्पिक कामनाओं, आवेगों और उद्वेगों, राग-द्वेष और इच्छाओं की दौड़-धूप से पूर्णतः मुक्त रहता है । यह आत्मलीनता (self - absorption ) अथवा स्वयं की आत्म शान्ति (resting in one's own self) की स्थिति हैं । इस काल में जैन योग पर अन्य योग पद्धतियों का प्रभाव प्रारम्भिक काल में किसी एक योग-पद्धति पर अन्य योग-पद्धति का प्रभाव दर्शाना बहुत कठिन है, क्योकि तत्कालीन धार्मिक ग्रन्थ या साहित्य में ऐसे कोई भी निश्चित प्रमाण हमें नहीं मिलते हैं, जिनसे एक का प्रभाव दूसरे पर सिद्ध हो सके । उस (प्रारम्भिक ) काल में भारत की 'श्रामणिक परम्परा (ramanic trend) विभिन्न प्रकार के निश्चयात्मक सम्प्रदायों भूमिकाओं में विभाजित नहीं हुई थी, किन्तु इस द्वितीय काल में जिसे आगम युग ( canonical period) माना जाता है, दार्शनिक विचारों के विभिन्न वर्गों ने अपने विशिष्ट नामों के साथ एक निश्चित रूप ग्रहण कर लिया था, जैसे जैन, बौद्ध, आजीवक, सांख्य, योग आदि। इस काल में जैनयोग और बौद्धयोग तथा पतंजलि के योग में अनेक प्रकार की समानताएँ मिलती हैं। पं. सुखलालजी ने अपनी 'तत्वार्थसूत्र' की भूमिका (पृ. ५५) में इन समानताओं का विस्तार से विवेचन किया है, लेकिन इन समानताओं के आधार पर एक का प्रभाव दूसरे पर सिद्ध करना बहुत कठिन हैं। यद्यपि सामान्यतः यह माना जा सकता है, कि इन सभी पद्धतियों का एक ही मूल स्रोत रहा है, जिससे ये विकसित हुई है और वह एक स्रोत था - भारतीय श्रमण - परम्परा' । परवर्ती काल मे विशेष रूप से आगम युग में हमें पतंजलि के योगसूत्र और उमास्वाति के तत्वार्थसूत्र में कुछ समानताएँ अवश्य मिलती है, लेकिन उनके नामकरण और व्याख्याएँ अलग अलग प्रकार से हुई है- इससे एक का प्रभाव दूसरे पर सिद्ध नहीं हो सकता । यद्यपि पं. सुखलालजी ने अपने तत्वार्थसूत्र की भूमिका (पृ. ५५) में तत्वार्थसूत्र और योगदर्शन में समान मान्यता के इक्कीस विचार - बिन्दु दिये है, ये समत्वयोग और अन्य योग 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003605
Book TitleSamatva Yoga aur Anya Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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