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१२. कर्मफल संविभाग
जैन दृष्टिकोण २२ / बौद्ध दृष्टिकोण २२ / गीता एवं हिन्दू परम्परा का दृष्टिकोण २३ / तुलना एवं समीक्षा २३ / १३. जैन दर्शन में कर्म की अवस्था
१. बन्ध २४ / २. संक्रमण २५ / ३. उद्वर्तना २५ / ४. अपवर्तना २५ / ५. सत्ता २६ / ६. उदय २६ / ७. उदीरणा २६ / ८. उपशमन २६ / ९. निधत्ति २६ / १०. निकाचना २६ / कर्म की अवस्थाओं पर बौद्ध धर्म की दृष्टि से विचार एवं तुलना २७ / कर्म की अवस्थाओं पर हिन्दू आचार दर्शन की दृष्टि से विचार एवं तुलना २७ /
१४. कर्म विपाक की नियतता और अनियतता
जैन दृष्टिकोण २८ | बौद्ध दृष्टिकोण २९ / नियतविपाक कर्म २९ / अनियतविपाक कर्म २९ / गीता का दृष्टिकोण ३० / निष्कर्ष ३० |
१५. कर्म - सिद्धान्त पर आक्षेप और उनका प्रत्युत्तर
अध्याय २
१. तीन प्रकार के कर्म
२. अशुभ या पाप कर्म
पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण ३६ / जैन दृष्टिकोण ३६ / बौद्ध दृष्टिकोण ३६ / कायिक पाप ३६ / वाचिक पाप ३६ / मानसिक पाप ३३२ / गीता का दृष्टिकोण ३७ / पाप के कारण ३७ /
३. पुण्य (कुशल कर्म )
पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण ३७ / ४. पुण्य और पाप ( शुभ और अशुभ) की कसौटी
५. सामाजिक जीवन में आचरण के शुभत्व का आधार
जैन दर्शन का दृष्टिकोण ४२ / बौद्ध दर्शन का दृष्टिकोण ४३ / हिन्दू धर्म का दृष्टिकोण ४३ / पाश्चात्य दृष्टिकोण ४४ /
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कर्म का अशुभत्व शुभत्व एवं शुद्धत्व
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