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६. शुभ और अशुभ से शुद्ध की ओर
जैन दृष्टिकोण ४४ | बौद्ध दृष्टिकोण ४६ / गीता का दृष्टि
कोण ४६ / पाश्चात्य दृष्टिकोण ४७ / ७. शुद्ध कर्म (अकर्म) ८. जैन दर्शन में कर्म-अकर्म विचार ९. बौद्ध दर्शन में कर्म-अकर्म का विचार
१. वे कर्म जो कृत (सम्पादित) नहीं हैं लेकिन उपचित (फल प्रदाता) हैं ५० | २. वे कर्म जो कृत भी हैं और उपचित हैं ३४६ / ३. वे कर्म जो कृत हैं लेकिन उपचित नहीं हैं ५० /
४. वे कर्म जो कृत भी नहीं हैं और उपचित भी नहीं हैं ५१ / १०. गीता में कम-अकर्म का स्वरूप
१. कर्म ५१ / २. विकर्म ५१ / ३. अकर्म ५१ / ११. अकर्म की अर्थ-विवक्षा पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार
अध्याय ३
कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया
५६
१. बन्धन और दुःख
१. प्रकृति बन्ध ५७ / २. प्रदेश बन्ध ५७ ) ३. स्थिति बन्ध
५७ / ४. अनुभाग बन्ध ५७ / २. बन्धन का कारण-आस्रव
जैन दृष्टिकोण ५७ / १. मिथ्यात्व ६१ / २. अविरति ६१ / ३. प्रमाद ६२ / ( क ) विकथा ६२ / (ख ) कषाय ६२ / (ग) राग ६२ / (घ) विषय-सेवन ६२ / (ङ) निद्रा ६२ / ४. कषाय ६२ / ५. योग ६२ / बौद्ध दर्शन में बन्धन (दुःख) का कारण ६३ / गीता की दृष्टि में बन्धन का कारण ६४ / सांख्य योग दर्शन में बन्धन का कारण ६६ / न्याय दर्शन में
बन्धन का कारण ६७ / ३. बन्धन के कारणों का बन्ध के चार प्रकारों से सम्बन्ध ४. अष्टकर्म और उनके कारण
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