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अध्याय १
१. नैतिक विचारणा में कर्म सिद्धान्त का स्थान
२. कर्म सिद्धान्त की मौलिक स्वीकृतियाँ और फलितार्थ
३. कर्म सिद्धान्त का उद्भव
४. कारण सम्बन्धी विभिन्न मान्यताएँ
६.
१. कालवाद ४ / २. स्वभाववाद ४ / ४. यदृच्छावाद ५/५ महाभूतवाद ५ / ७. ईश्वरवाद ५ /
औपनिषदिक दृष्टिकोण
विषय-सूची
जैन दर्शन का समन्वयवादी दृष्टिकोण
गीता का दृष्टिकोण ६ | बौद्ध दृष्टिकोण ६ / जैन दृष्टिकोण ७ /
७. 'कर्म' शब्द का अर्थ
गीता के द्वारा जैन दृष्टिकोण का समर्थन ९ /
८. कर्म का भौतिक स्वरूप
३. नियतिवाद ५ / ६. प्रकृतिवाद ५ /
कर्म - सिद्धान्त
गीता में कर्म शब्द का अर्थ १० / बौद्ध दर्शन में कर्म का अर्थ १० / जैन दर्शन में कर्म शब्द का अर्थ ११ /
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द्रव्य-कर्म और भाव - कर्म १३ / द्रव्य-कर्म और भाव-कर्म का सम्बन्ध १४ | (अ) बौद्ध दृष्टिकोण एवं उसकी समीक्षा १४ / (ब) सांख्य दर्शन और शांकर वेदान्त के दृष्टिकोण को समीक्षा १६ / गीता का दृष्टिकोण १६ / एक समग्र दष्टिकोण आवश्यक १७ /
९. भौतिक और अभौतिक पक्षों की पारस्परिक प्रभावकता १०. कर्म की मूर्तता
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मूर्त का अमूर्त प्रभाव १९ / मूर्त का अमूर्त से सम्बन्ध २० ११. कर्म और विपाक की परम्परा
जैन दृष्टिकोण २१ / बौद्ध दृष्टिकोण २१ /
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