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________________ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : १७ कह सकते हैं कि भाष्य तथा जम्बूद्वीप समास की रचना दिगम्बर मान्य पाठ के आधार पर की गई है । यद्यपि सुजिको ओहिरो का कहना है कि श्वेताम्बर पाठ के १-३ वर्गों के सूत्रों के विलोपन के आधार पर अब तक जो विश्लेषण किया गया है उससे यही प्रमाणित होता है कि श्वेताम्बर पाठ मूल रूप में हैं। सूत्र शैली में यथाक्रम शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है। 'सत् द्रव्य लक्षणम्' नामक सूत्र प्रस्तुत सन्दर्भ में उपयुक्त प्रतीत नहीं होता, वरन् बाद में जोड़ा गया प्रतीत होता है, इससे यह सिद्ध होता है कि सूत्र ५/२२ तत्त्वार्थसूत्र के प्राचीन मूलपाठ का नहीं है। सुजिको ओहिरो के शब्दों में जहाँ तक दोनों आवृत्तियों में सूत्रों के विलोपन का प्रश्न है दिगम्बर परम्परा में मान्य पाठ श्वेताम्बर परम्परा में मान्य पाठ से अधिक संशोधित प्रतीत होता है।' सूत्रगत मतभेद डॉ० सुजको ओहिरो ने तथा अन्य श्वेताम्बर और दिगम्बर विद्वानों ने भाष्यमान्य और सर्वार्थसिद्धिमान्य पाठों के उन सूत्रगत मतभेदों की विस्तार से चर्चा की है जो या तो आगमिक श्वेताम्बर परम्परा से या दिगम्बर मान्यताओं से संगति नहीं रखते हैं। डॉ० सुजिकोओहिरो ने सूत्रगत ऐसे आठ मतभेदों का संकेत किया है १. नय के प्रकार २. त्रस एवं स्थावर का विभाजन ३. अन्तराल गति में जीव तीन समय तक अनाहारक रहता है। ४. आहरक शरीर चतुर्दश पूर्वधर को होता है। ___आहारक शरीर प्रमत्तसंयत को होता है । ५. ज्योतिष देवों में तेजोलेश्या होती है, भवनपति व व्यन्तरों में कृष्ण से तेजस् तक चार लेश्याएँ होती है, इस प्रकार भवनपति, व्यन्तर एवं ज्योतिष्क इन तीन देवनिकायों में चार लेश्याएँ पायी जाती हैं । ६. बारह कल्य देवलोक है । दिगम्बर परम्परा मान्य पाठ (३/४) में बारह कल्प माने गये हैं, किन्तु ४/१९ में सोलह कल्प गिनाये हैं। तिलोयपण्णत्ति (८/११४) में १२ कल्पों की गणना है। ७. कई आचार्य काल को भी द्रव्य कहते हैं या काल भी द्रव्य है। १. देखें-तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक पं० सुखलालजी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी ५, भूमिका भाग, पृ० ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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