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________________ ६ : तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा पूर्वज धारा में होने में कोई बाधा नहीं आती है। इसीलिये उमास्वाति और गध्रपिच्छ भिन्नता और अभिन्नता के इस विवाद को मैं यहाँ नहीं उठा रहा हूँ। पं० सुखलालजी की भी यह भ्रान्ति हो है वे यह माने बैठे कि गृध्रपिच्छ, बलाकपिच्छ, मयुरपिच्छ आदि विशेषणों की सृष्टि दिगम्बर परम्परा में हुई है। प्राचीन सचेल धारा में भी पिच्छोंका ग्रहण होता था । पुनः विद्यानन्द के 'तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वातिप्रभृतिभिः' ऐसे बहुवचनात्मक प्रयोग को देखकर उसके अर्थ को अपने-अपने ढंग से तोड़नेमरोड़ने के जो प्रयत्न पं० फूलचन्द जी आदि दिगम्बर विद्वानों ने किये है वे भी उचित नहीं है। उसका स्पष्ट अर्थ इतना ही है कि 'तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों के रचियता उमास्वाति आदि आचार्य'-यहाँ बहवचनात्मक प्रयोग से लेखक अन्य ग्रन्थों और अन्य आचार्यों का संग्रह करता है। किन्तु इससे तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति है-इस मान्यता में कोई बाधा नहीं आती है। यह एक निश्चित सत्य है कि तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति है, फिर वे चाहे हम उन्हें गृध्रपिच्छ कहें या उच्चनागर शाखा के वाचक वंश के कहें, दोनों एक ही व्यक्ति के सूचक है। यह मानना कि गृध्रपिच्छ और उमास्वाति अलग-अलग व्यक्ति है-उसी प्रकार भ्रांत है जिस प्रकार यह कहना कि तत्त्वार्थ के कर्ता तो गध्रपिच्छ है और उमास्वाति मात्र भाष्यकार है। हमारे साम्प्रदायिक अभिनिवेशों के आधार पर इतिहास को झुठलाने के ये प्रयत्न निश्चय ही दुःखद हैं। तत्त्वार्थसत्र के आधारभूत ग्रंथ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों यह मानते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना आगम ग्रन्थों के आधार पर हुई है, किन्तु प्रश्न यह है कि तत्त्वार्थसूत्र के लेखक के लिए वे आधारभूत आगम ग्रन्थ कौन से थे? इस सन्दर्भ में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के विद्वानों में मतभेद है। दिगम्बर परम्परा के विद्वान् पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार', पं० परमानन्दजी शास्त्री', पं० कैलाशचन्दजी, डॉ० नेमिचन्दजी एवं पं० फूलचन्दजी ने १. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश (पं० जुगलकिशोर मुख्तार) पृ० १२५ । २. अनेकांत वर्ष ४ किरण १-तत्त्वार्थसत्र के बीजों की खोज, पं० परमानन्द शास्त्री। ३. जैन साहित्य का इतिहास, द्वितीय भाग, पं० कैलाशचन्दजी, चतुर्थ अध्याय । ४. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग २, पृ० १५९-१६२ । ५. देखें-सर्वार्थसिद्धि पं० फूलचन्द जी सिद्धान्तचार्य प्रस्तावना पृ० १३-१५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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