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मैं कहूँगी
संसारात तू, उगाच भटकू नको । काहीतरी मनामध्ये, उद्देश्य असो । नको नको असा, टाईमपास नको । आता तरी उठ, आत्मदर्शन साधो ॥
यह महान् कार्य करने के लिए कर्त्ताभाव, अहंभाव को हटाना होगा। जिंदगीभर हम इसी गलत खयाल में रहते हैं कि 'मैं हूँ तो दुनिया है।' मेरे बिना ये घर; घर नहीं होता आदि बातें हमारे मन में घर करके बैठी होती हैं। इन्हें पहले हटाना होगा । मैं मेरी दादी के घर, वाढोणा गांव में अक्सर छुट्टियों में जाया करती थी । वहाँ हमारी खेतीबाड़ी है। खेत जाते वक्त हम बच्चे बैलगाड़ी में बैठकर ही जाते थे। दररोज मैं देखती कि एक कुत्ता हमारी बैलगाड़ी के नीचे ही चलता था। जब बैलगाड़ी रुकती, तो वह भी रुक जाता, पर वह ऐसे ढंग से चलता, जैसे बैलगाड़ी को चलानेवाले बैल नहीं, बल्कि वह खुद है। यही हालत हमारी भी है। जब हम इस दुनिया में नहीं रहेंगे, तो घर के और समाज के लोग हमें कुछ दिनों में ही भुला देंगे। फिर भी हम इस घर के लिए पूरी जिंदगी लुटाते हैं। कुछ वक्त खुद के लिए भी निकालना चाहिए ।
एक गांव में एक बड़ा कारखाना खुलने वाला था | अखबार में विज्ञापन आता है कि एक मॅनेजर और एक चपरासी की सख्त जरूरत है। मॅनेजर की पोस्ट के लिए काफी लोग आए । सबका इन्टरव्ह्यू होने के बाद एक नौजवान को मॅनेजर की जगह पर रखा गया। बाद में उसी दिन चपरासी का भी इन्टरव्यू रखा गया था । मॅनेजर भी ट्रस्टियों के साथ चपरासी पद के उम्मीदवार से प्रश्न पूछता रहा। उम्मीदवार ने कहा- "मैं सभी काम कर लूंगा, पानी भरूंगा, सफाई कर लूंगा ।" तब मॅनेजर
60 / ध्यान दर्पण
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