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वैराग्य का होना भी जरूरी है। मानव ने जिस दिन चाँद पर अपना पहला कदम रखा, वह दिन उसके लिए महत्वपूर्ण, आनंदपूर्ण था । नील आर्मस्ट्रांग उस मानव का नाम था और साल था जून १९६९ का । धन्य था वह मानव, धन्य था वह समय । पर क्या वह इन्सान जमीन पर ठीक से चल सका ?
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हैरत है इस जमीं पे चलना ना आया हमें । जब कि नक्शे कदम, हमारे चाँद पर भी हैं ।।
हमारे भारतवर्ष में अनेक संत सूरज के समान तेजमान् हुए। उनमें से एक नाम चमका, रामकृष्ण परमहंस का । स्वामी विवेकानंद उनके शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद का पूर्व नाम हैनरेन्द्र। उन्हें तीन प्रश्न बहुत बेचैन करते रहते थे। उन्होंने मन में निश्चय किया कि जो भी इन तीनों प्रश्नों का उत्तर 'हाँ' में देगा, वही मेरा गुरु होगा। वे काफी जगह भटके आखिर वे परमहंस के पास पहुँचे और उनसे ये तीन प्रश्न पूछे
१)
२)
३)
क्या वह भगवान् मुझे भी दिखेगा ?
इन तीनों प्रश्नों के उत्तर 'हाँ' में पाकर नरेन्द्र स्वामी विवेकानंद बन गए।
क्या सचमुच भगवान् है? वह कैसा है ?
उसे किसी ने देखा है ?
आज का मानव यह सोचता है कि जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, तब आध्यात्मिक - जगत् में प्रवेश कर लूंगा, पर वह यह नहीं सोचता कि बुढ़ापा एक रोग है । उस वक्त शरीर थका और बीमारी से घिरा हुआ होता है, शरीर में न तो शक्ति होती है, न ही उमंग । साधना के लिए शक्ति जरूरी है । साधन ठीक रहेगा, तो साध्य को प्राप्त करना संभव है।
आज के आधुनिक जगत् में बहुतांश लोगों को आध्यात्मिक–
56 / ध्यान दर्पण
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