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२.
मूढ़ चित्त- इस अवस्था में तम की प्रधानता रहती है और इसमें निद्रा, आलस्य का प्रादुर्भाव होता है। विक्षिप्त मन- मन थोड़ी देर के लिए एक विषय पर लग जाता है, परन्तु तुरन्त ही अन्य विषय की ओर दौड़ जाता
४.
एकाग्र चित्त- यह वह अवस्था है, जहां चित्त देर तक एक विषय पर लगा रहता है। यह किसी वस्तु पर मानसिक केन्द्र या ध्यान की अवस्था है। निरुद्ध चित्त– इस अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शांत अवस्था में आ जाता है।
जैन, बौद्ध और योग-दर्शन में मन की इन विभिन्न अवस्थाओं के नामों में चाहे अन्तर हों, लेकिन उनके मूलभूत दृष्टिकोण में कोई अन्तर नहीं है, जैसा कि निम्न तालिका से स्पष्ट हैजैन-दर्शन विक्षिप्त यातायात क्लिष्ट सुलीन बौद्ध-दर्शन कामावचार रूपावचार अरूपावचार लोकोत्तर योग-दर्शन क्षिप्त विक्षिप्त एकाग्र निरुद्ध
जैन-दर्शन का विक्षिप्त मन, बौद्धदर्शन का कामावचार चित्त और योगदर्शन के क्षिप्त एवं मूढ़ चित्त समानार्थक हैं। चित्त की अन्तिम अवस्था को जैनदर्शन में सुलीन मन, बौद्धदर्शन में लोकोत्तर चित्त और योगदर्शन में निरुद्ध चित्त कहा गया है।
ध्यान के सन्दर्भ में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि ध्यान किसका किया जाए? दूसरे शब्दों में, ध्येय का आलम्बन क्या है? सर्वप्रथम यह जानें कि हमारे ध्यान का प्रयोजन क्या है? जो व्यक्ति अपनी वासनाओं का पोषण चाहता
48/ध्यान दर्पण
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