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यही ध्यान की परम उपलब्धि है। इसी काल में, इसी क्षेत्र में, इसी भव में, हम मुक्ति की ओर चल सकते हैं और बड़ी दृढ़ता से कह सकते हैं- शुद्धोऽ हं! शुद्धोऽ हं!! शुद्धोऽ हं!!! BOR
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धर्म क्या है ? 'वत्थु सहावो धम्मो'- आत्मा का स्वभाव ही धर्म है, अत: स्व के भाव में, स्वभाव में, समता में, वीतरागता में स्थित हो जाना ही धर्मध्यान है। इसी धर्मध्यान का अन्य स्वरूप है- सामायिक।
136/ध्यान दर्पण
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