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आंखें कोमलता से बंद करें। कोई हलचल ना करें। मुद्रा का चुनाव करें। ब्रह्ममुद्रा में हाथ नाभि के नीचे रखें। दायां हाथ ऊपर होगा। ज्ञानमुद्रा में दोनों हाथ घुटने पर रखें और अंगूठा तथा तर्जनी को जोड़ें, बाकी की तीन अंगुलियाँ खुली रहें।
सर्वप्रथम 'अर्हम्' की ध्वनि नौ बार करें। प्रथम, दीर्घश्वास लें व अहम् का उच्चारण करें।
संकल्प करें – 'मैं चित्तशुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर रहा हूँ।' ध्यान का पहला चरण - कायोत्सर्ग
शरीर को शिथिल, स्थिर और तनावमुक्त करें। पीठ और गर्दन सीधी रखें, कोई अकड़न नहीं हो। मांसपेशी तथा पूरा शरीर तनावमुक्त हो।
पांच मिनट तक कायगुप्ति का अभ्यास करें। चित्त को पैर से लेकर सिर तक ले जाएँ। शिथिलता का आदेश दें- 'प्रत्येक अवयव शिथिल हो जा, शिथिल हो रहा है, शिथिल हो गया है, शरीर हलका हो गया है।'
अब अनुभव करें- पूरा शरीर हल्का हो गया है। शांति का अनुभव हो रहा है। मेरे शरीर पर पहने हुए वस्त्र मुझसे भिन्न हैं। मैं और शरीर भिन्न हैं। कल्पना करें- मेरे शरीर के चारों ओर सफेद रंग के परमाणु फैले हुए हैं। मैं जो श्वास ले रहा हूँ, वह भी श्वेत रंग का है। सभी तरफ, आसमान से इस धरती तक सिर्फ श्वेत रंग है। मेरा शरीर उसमें बहता रहा है। मैं (आत्मा) दूर से देख रहा हूँ। शरीर और आत्मा की भिन्नता मेरी समझ में आ गई है। मैं शरीर नही हूँ। मेरा शरीर श्वेत रंग के परमाणुओं के साथ बह रहा है। मैं सिर्फ देख रहा हूँ। सर्वत्र शांति है। अनुभव करें, देखें, शरीर और आत्मा की भिन्नता।
ध्यान दर्पण/129
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