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चल - श्वास को मन्द, दीर्घ या सूक्ष्म करने से मन शांत होता है। इसके साथ-साथ आवेग शान्त होते हैं, कषाय शान्त होते हैं, उत्तेजनाएं और वासनाएं शान्त होती हैं। श्वास जब छोटा होता है, तब वासनाएं उभरती हैं, उत्तेजनाएं आती हैं, कषाय जाग्रत होते हैं । इन सबसे श्वास प्रभावित होता है। इन सब दोषों का वाहन है - श्वास । जब कभी मालूम पड़े कि उत्तेजना आने वाली है, तब तत्काल श्वास को लम्बा कर दें, दीर्घश्वास लेने लग जाएं, आने वाली उत्तेजना लौट जाएगी । इसका कारण है- श्वास का वाहन उसे उपलब्ध नहीं हो पाना । बिना आलम्बन के कोई उत्तेजना या वासना प्रकट नहीं हो सकती।
समवृत्तिश्वास- प्रेक्षा
जैसे दीर्घश्वास - प्रेक्षा ध्यान का महत्वपूर्ण तत्त्व है, वैसे ही समवृत्तिश्वास- प्रेक्षा भी उसका महत्वपूर्ण सूत्र है। बाएं नथुने से श्वास लेकर दाएं से निकालना और दाएं नथुने से लेकर बाएं से निकालना- यह समवृत्तिश्वास है । इसे देखना, इसकी प्रेक्षा करना, इसके साथ चित्त का योग करना महत्वपूर्ण बात है। समवृत्तिश्वास- प्रेक्षा के माध्यम से चेतना के विशिष्ट केन्द्रों को जाग्रत किया जा सकता है। इसका सतत अभ्यास अनेक उपलब्धियों में सहायक हो सकता है।
४. शरीर - प्रेक्षा
शरीर को समग्र दृष्टि से देखने का अभ्यास शरीर - प्रेक्षा है । शरीर - प्रेक्षा की प्रक्रिया अन्तर्मुख होने की प्रक्रिया है। सामान्यत:, बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा को अन्दर की ओर प्रवाहित करने का प्रथम साधन स्थूल शरीर है । शरीर - प्रेक्षा में पहले शरीर के बाहरी भाग को देखते हैं । फिर शरीर के भीतर मन को ले जाकर भीतरी भाग को देखते हैं।
ध्यान दर्पण / 123
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