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को पकड़ने के लिए प्राण को पकड़ें और प्राण को पकडने के लिए श्वास को पकड़ें। चित्त को एकाग्र करने का एक सरल और सक्षम उपाय है- श्वास- प्रेक्षा । मन की शांत स्थिति या एकाग्रता के लिए श्वास को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। श्वास- विजय या श्वास- नियंत्रण के बिना ध्यान नहीं हो
सकता।
हम श्वास लेते समय 'श्वास ले रहे हैं'- इसी का अनुभव करें, वही स्मृति रहे । मन किसी अन्य प्रवृत्ति में न जाए, वह श्वासमय हो जाए, उसके लिए समर्पित हो जाए। श्वास की भाव - क्रिया ही श्वास - प्रेक्षा है । यह नथुनों के भीतर की जा सकती है, श्वास के पूरे गमनागमन पर भी की जा सकती है। श्वास के विभिन्न आयामी और विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है।
श्वास- प्रेक्षा के प्रयोग हैं- दीर्घश्वास - प्रेक्षा, समवृत्तिश्वासप्रेक्षा, सूक्ष्मश्वास - प्रेक्षा आदि ।
दीर्घ श्वास- प्रेक्षा
प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करने वाला सबसे पहले श्वास की गति को बदलता है। वह श्वास को लम्बा, गहरा और लयबद्ध बना देता है। सामान्यतः, आदमी एक मिनट में १५-१७ श्वास लेता है। दीर्घश्वास - प्रेक्षा के अभ्यास से यह संख्या घटाई जा सकती है । साधारण अभ्यास के बाद यह संख्या एक मिनट में १० से कम तक की जा सकती है और विशेष अभ्यास के बाद उसे और अधिक कम किया जा सकता है। श्वास को मन्द या दीर्घ करने के लिए तनुपट की मांसपेशियों का समुचित उपयोग करना आवश्यक है। श्वास छोड़ते समय पेट की मांसपेशियाँ सिकुड़ती हैं और लेते समय वे मिलती हैं।
122/ ध्यान दर्पण
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