________________
देश में स्थिर करना धारणा है। धारणा शरीर या उससे भिन्न अन्य वस्तुओं पर की जा सकती है। देहातीत धारणाएं पिण्डस्थ स्थान की कोटि में समाविष्ट हैं।
धारणा के पाँच प्रकार हैं - (१) पार्थिवी-धारणा (२) आग्नेयी-धारणा (३) मारूति-धारणा (४) वारूणी-धारणा (५) तत्त्व-रूपवती-धारणा
इनका संबंध पार्थिवी, तेजस्, वायुवीय और जलीय-तत्त्वों से है। साधक ध्यान करने के लिए किसी एक सुखासन से बैठे
और यदि उसे देहिक–धारणाओं के द्वारा पिण्डस्थ-ध्यान का अभ्यास करना हो, तो वह सर्वप्रथम किसी विशाल और निर्मल स्थान पर आसन लगाकर बैठने की अनुभूति करे। उस अनुभूति को इतना पुष्ट बनाए कि उसे प्राप्त अनुभूति में तन्मयता हो जाए।
108/ध्यान दर्पण
RE
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org