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प्रभात जन्मभूमि जननी जनक आदि का वर्णन
जैन संस्कृति के विकास तथा उन्नति के इतिहास पर दृष्टि डालने पर यह ज्ञात होता है कि कैवल्य-सूर्य की रश्मियों से विश्व का मोहान्धकार दूर करने वाले तीर्थंकरों ने अपने जन्म द्वारा उत्तर भारत की भूमि को पवित्र किया तथा निर्वाण द्वारा भी उसे तीर्थस्थल बनाया, किन्तु उनकी धर्ममयी देशना रूप अमृत को पीकर, महत्वपूर्ण वीतरागता के रस से भरे शास्त्रों का निर्माण करने वाले धुरंधर आचार्यों ने अपने जन्म से दक्षिण भारत की भूमि को श्रुति तीर्थ बनाया। येलगुळ में जन्म
उसी ज्ञानधारा से पुनीत दक्षिण भारत के बेलगाँव जिले को नररत्न आचार्य शांतिसागर महाराज की जन्भूमि बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
भोजग्राम के समीप लगभग चार मील की दूरी पर विद्यमान ग्राम येलगुल में आषाढ़ कृष्णा ६, विक्रम संवत् १६२६, सन् १८७२ में बुधवार की रात्रि को उनका जन्म हुआ था। वह ग्राम भोजग्राम के अंतर्गत तथा सान्निध्य (समीप) में था, इससे भोज भूमि ही जन्म स्थान है, ऐसी सर्वत्र प्रसिद्धि हुई।
वस्तुतः उस ग्राम में महाराज के मामा का निवास था। वे वहाँ के ग्रामपति अर्थात् पाटिल थे। उनके जन्म द्वारा मातुल गृह पवित्र हुआ था। ये बातें हमें तारीख १३ सितम्बर सन् १९५२ को ज्ञात हुई थी, जब हम पूज्य श्री के जीवन वार्ता जानने हेतु भोजमूमि तथा कर्नाटक प्रांत के अनेक ग्राम आदि में गये थे।
सन् १९७० के पर्युषण पर्व में हम महाराज के जन्मग्राम येलगुड गये थ। उनकी जन्मभूमि हमें तीर्थ रूप लगी। वहाँ के उद्यान में चन्दन का वृक्ष देखकर हर्ष हुआ कि चन्दन के समान गुणराशि महात्मा का जन्मस्थान चन्दन के वृक्ष से समलंकृत है। क्षत्रिय वंश में जन्म ___ इनका जन्म क्षत्रिय वंश में हुआ था। पिताश्री भीमगौंडा पाटील थे। जननी कहलाने का पुण्य माता सत्यवती को प्राप्त हुआथा। इनकी जाति चतुर्थ जैन थी, जिसमें अनेक दीक्षाधारी महापुरुषों का जन्म हुआ था।
कोल्हापुर में भगवज्जिनसेनाचार्य (महापुराणकार) का मठ, जो आज भी विद्यमान है, उसके भट्टारक श्री जिनसेन स्वामी चतुर्थ जाति के सत्पुरुष हैं।
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