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________________ १० noble mind.) जहाँ बड़े-बड़े महापुरुष इस रोग से नहीं बचे हैं, वहीं आचार्य महाराज में यह विकृति भी नहीं है। ऐसी पूज्यनीय आत्मा के विषय में जानने वाले व्यक्ति का मौन रहना जनहित की दृष्टि से अक्षम्य अपराध ही माना जायेगा । आचार्यश्री की पवित्र जीवनी हमारे लिये श्रद्धा की वस्तु है, क्योंकि उनके पद पर चलने की क्षमता साधारण पुण्य की बात नहीं है । सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर अन्तः बाह्य निर्ग्रन्थ वृत्तिका पाना असामान्य सौभाग्य की बात है । आत्मानुशासन में लिखा है : यदेतत्स्वछन्दं विहरणमकार्पण्यमशनम् सहार्थ्य संवास: श्रुतमुपशमै क श्रमफलम् । मनो मन्दस्यन्दं वहिरपि चिरायाति विमृशन् । न जाने कस्येयं परणति रुदारस्य तपसः || ६७ || अर्थ :हम नहीं जानते कि यह किस महान् तप का विपाक है, जो मुनिजन स्वतंत्रता के साथ विहार करते हैं, आत्मगौरव पूर्वक आहार ग्रहण करते हैं, गुणी व्यक्तियों के सहवास में रहते हैं, शांत भाव ही है परिश्रम का फल जिनके ऐसे ज्ञान के धारक हैं तथा जिनका प्रशांत चित्त अंतर्दृष्टि में निमग्न रहकर बहुत समय पश्चात् बहिर्मुखता धारण करता है । वहाँ यह भी कहा है 1 : विरतिरतुला शास्त्रे चिन्ता तथा करुणा परा । मतिरपि सदैकान्तध्वान्त प्रपंच विभेदिनी । अनशन तपश्चर्या चान्ते यथोक्त विधानतो । भवति महतां नाल्पस्येदं फलं तपसो विधेः ॥ ६८ ॥ महापुरुषों का विषय-त्याग अतुलनीय होता है । शास्त्र संबंधी चिन्ता उनके पास रहती है। सम्पूर्ण जीवों पर करुणा करने को वे तत्पर रहते हैं। उनकी बुद्धि सर्वदा एकांत दृष्टि के अंधकार के प्रसार को दूर करती है तथा अंत में वे आगम के अनुसार अनशन तप करते हैं। ऐसी वृत्ति अल्प तपश्चर्या का फल नहीं है। श्रद्धांजलि ऐसे पवित्र आत्म-पथ पर अवस्थित आचार्यश्री की अनुपम तथा असाधारण अवस्था की जब तक जीव को उपलब्धि न हो, तब तक उनके आलोकमयी जीवन के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करना प्रत्येक मुमुक्षु का कर्तव्य हो जाता है । उन्निनीषु आत्मा का उत्थान इस उपाय से होता है। यह सोच कर हमने अभिनंदन ग्रंथ का विचार छोड़कर श्रद्धांजलि स्वरूप इस ग्रंथ निर्माण का निश्चय किया। यह कार्य मुनीन्द्र कुंदकुन्द स्वामी की धार्मिक देशना के पूर्णतया अनुरूप है, कारण जब तक प्रत्याख्यानावरणादि कषायों - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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