SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 769
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बालब्रह्मचारीधर्म-दिवाकर विद्वत्रत्न विद्यावारिधिस्व. पंडित सुमेरुचंद्रजी दिवाकर न्यायतीर्थशास्त्री, बी.ए., एल.एल.बी., सिवनी, म.प्र. जीवन परिचय अपनी उच्च धार्मिक, सामाजिकसेवाओं केकारणभारतवर्ष के जैन बंधुस्व. पंडित समेरूचन्द्रजी दिवाकर सेभली-भाँति परिचित हैं। उनका जन्ममध्य प्रदेश के सिवनी नगर में ८ अक्टूबर १९०५ (विक्रम संवत् १९६२) विजयादशमी के दिन रविवार को हुआ । आपके पूज्य पिता जी स्वर्गीय सिंघई कुँवरसेनजी भारतवर्षीय जैन समाज में अपनीधर्म, समाजसेवा तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे । समाज के वरिष्ठ विद्वान् न्यायाचार्य सिद्धांतवारिधि पं. शिरोमणि माणिकचंदजी ने एक बार लिखा था कि-"सिंघई कुँवरसेनजी बड़े प्रतिभाशाली थे। वे धार्मिक वीर पुरूष थे। जैन विद्वानों से अक्षुण्ण प्रमोदभावना रखते थे। उन्होंने समाज में महान् कार्यों को करके विशेष ख्याति प्राप्त की थी। ऐसे नररत्न धन्य हैं । ऐसे महान् नरपुंगव अब कहाँ हैं।" पंडित श्री दिवाकर जीने १९२१ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोगआन्दोलन में विदेशी सत्ता द्वारा संचालित अंग्रेजी स्कूल से संबंध त्याग कर कारंजा, मुरैना के जैन गुरूकुल में संस्कृत और धर्म का अध्ययन किया । वहाँ से आप स्याद्वाद विद्यालय, बनारस आये जहाँ से न्यायतीर्थ और शास्त्री हुए । स्वर्गीय विद्यावारिधि बैरिस्टर चंपतरायजी की सलाह पर आपने हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में पुनः अंग्रेजी काअध्ययन प्रारंभ किया।क्रमानुसार हिन्दू विश्वविद्यालय से इंटर, जबलपुर से बी.ए. तथा नागपुर विश्वविद्यालयसे एल.एल.बी. की परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की। श्री दिवाकरजी के व्यक्तित्वसे आकर्षित होकर सन् १९३६ में नागपुर उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश सर ग्रिल ने पूछा था कि-"क्या तुम्हें गह्वर्नमेंट सर्विस चाहिए ?' उनका अभिप्राय इन्हें उच्चपद पर नियुक्त करने का था। दिवाकरजी ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया था कि"मैं अहिंसामय जैनधर्म की सेवा करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करने का संकल्प कर चुका हूँ । प्राणिमात्र की सेवा करना मेरे जीवन का लक्ष्य-बिन्दु बन चुका है। मेरी दृष्टि धन कमाने की नहीं है।" इस उत्तर से सर ग्रिल बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि-"मेरा विश्वास है तुम सफल, यशस्वी और महान् लोक कल्याणकारी व्यक्ति बनोगे। मेरी तुम्हारे प्रति हार्दिक मंगल कामना है।" शिक्षा प्राप्ति के अनंतर राष्ट्रीय आंदोलन ने इनको अपनी ओर खींचा। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागरजी महाराज के दिव्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो उन्होंने सभी विकल्पों का त्याग कर जिनशासन की सेवा के कार्य में पूर्णरूपेण समर्पण कर दिया और फिर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर जीवन के अंतिम क्षण तक यथाशक्ति उन्होंने जो धर्म, समाज, संस्कृति व साहित्य की बिना किसी अर्थाभिलाषा के सेवा की उससे संपूर्ण जैन जगत् परिचित है। आपने चारित्र चक्रवर्ती, आध्यात्मिक ज्योति, तीर्थंकर, जैनशासन, महाश्रमण महावीर, आचार्य देशभूषण महाराज का जीवन चारित्र, तत्विक चिंतन, अध्यात्मवाद की मर्यादा, आगम पथ, विश्वतीर्थ श्रवणबेलगोला, चंपापुरी, नंदीश्वरद्वीप, भगवान महावीर, कुंदकुंद की देशना, सुलझे पशु उपदेश सुन, समीचीन दृष्टि आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy