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________________ १६ अगस्त - आचार्य श्री की जग-प्रसिद्ध सहज, सरल, चित्ताकर्षक ध्यान मुद्रा। १६ अगस्त १९५५ महाराज ने आज भी जल नहीं लिया। आज उन्होंने भक्तों को दर्शन दिया व शेष समय आत्म चिंतन, मनन व ध्यान में बिताया। १७ अगस्त - आचार्य श्री हजारों दर्शनार्थियों के बीच में । इसके थोड़ी ही देर पूर्व उन्होंने यम -सल्लेखना की घोषणा की थी। १७ अगस्त १९५५ - महाराज ने आज दिन में तीन बजे सिर्फ जल को छोड़कर आमरण सल्लेखना ग्रहण की। इस अवसर पर संघपति सेठ गेंदनमलजी बम्बई, रावजी देवचंदजी शोलापुर, गुरूभक्त सेठ चंदूलालजी सराफ बारामती, सेठ मानिकचंदजी वीरचंद जी मंत्री कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र आदि उपस्थित थे एवं त्यागी वर्ग में श्री १०५ क्षुल्लक विमलसागरजी, क्षुल्लक सुमतिसागरजी , श्री भट्टारक जिनसेनजी म्हसाल, श्र. भरमप्पा तथा कुछ आर्यिकायें उपस्थित थी। आचार्य श्री इस दिन पहाड़ के ऊपर मन्दिर जी में पहुंच गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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