SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 658
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारित्र चक्रवर्ती किया ? देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक आदि कितने किए हैं ?"किन्हीं विषयों में गड़बड़ी ज्ञात कर वे पूछने लगे-“खाने के कारण तो गड़बड़ी नहीं हुई है।" हमने कहा-“महाराज ! आपके चरणों में हम आत्मनिर्मलता के हेतु आए हैं। आपकी आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं।" एकान्त में उपदेश "महाराज ने लोगों से कहा-“हमारा भाई आया है उसका उपदेश होगा।" मेरा उपदेश सुनकर वे संतुष्ट हुए। पश्चात् एकान्त में समझाने लगे, तुम चतुर्थ हो और यह पंचम जाति का है, इस प्रकार जाति के साथ भेद-भाव मत करना। लोग झगड़ा मोल लेते हैं। तुम शत्रु पर गुस्सा मत करना। शत्रु भी यदि त्यागी हो तो उसे साथ में रखना, अकेले भ्रमण मत करना। तुम्हारा भी कल्याण होगा।"स्वच्छन्द विहार का वे विरोध करते थे। आज कोई-कोई आगम की आज्ञा को न मानकर स्वच्छन्द विचरण करते हैं। यह अयोग्य कार्य है। आचार्य देशभूषण महाराज ने बताया था-"प्रतिवर्ष आचार्य महाराज को पत्र भेजकर उनसे प्रायश्चित्त लेकर हम प्रायश्चित्त ग्रहण करते रहे हैं।" स्वाध्याय के लिए मार्गदर्शन उन्होंने कहा था-"प्रायश्चित्त शास्त्र पढ़ना। प्रायश्चित शास्त्र दूसरों को पढ़कर नहीं सुनाना। प्रथमानुयोग का भी मनन करना। एकान्त में अपनी शांति के हेतु समयसार पढ़ना। सार्वजनिक रूप में समयसार नहीं पढ़ना।"आज समयसार का जनसाधारण में प्रचार बढ़ने के साथ असंयम का महारोग बढ़ रहा है। नकली सम्यक्त्व को रत्न माना जा रहा है। प्रपितामह चर्चा के प्रसंग में देशभूषण महाराज ने बताया-“मुनि जयकीर्ति महाराज उनके दीक्षा गुरु थे। जयकीर्ति महाराज के गुरु पायसागर महाराज थे। पायसागरजी के गुरु आचार्य शांतिसागर महाराज थे। इस दृष्टि से आचार्य महाराज देशभूषण महाराज के प्रपितामह हुए।"उस पर मैंने कहा-“तब तो संयम की दृष्टि से आप महाराज शांतिसागरजी के प्रपौत्र ठहरे।" देशभूषण महाराज ने कहा-“बिलकुल ठीक बात है।" क्षण भर में वैराग्य की लहर आने पर वे कहने लगे-“पंडितजी ! किसका पिता, किसका पुत्र, कौन किसका है ? जगत् में सभी जीव अलग-अलग हैं।" आचार्यश्री का श्रेष्ठ विवेक इसके पश्चात् देशभूषण महाराज ने कहा-“आचार्य शांतिसागर महाराज ने अपने जीवन की एक विशेष घटना हमें बताई थी। एक ग्राम में एक गरीब श्रावक था। उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only ww www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy