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________________ श्रमणों के संस्मरण ५२६ समीपवर्ती ग्रामवासी चाहता था कि गुरुदेव की चार माह पर्यन्त सेवा का सौभाग्य हमारे ग्राम को प्राप्त हो। कई स्थानों के लोग महाराज के पास एकत्रित हो गए थे। निर्णय होना शेष था। नसलापुर के अनेक लोग आए थे। उनमें शक्ति और भक्ति गुणसंपन्न भीमशा मकदूम नामक व्यक्ति ने ऐसा काम किया, जिसकी कोई स्वप्न में भी शायद कल्पना नहीं करेगा। ___ महाराज गाँव के बाहर गुफा में ध्यान करने गए। प्रभात में चार बजे महाराज सामायिक को बैठे ही थे कि भीमशा अपने साथियों सहित गुफा में गया। भीमशा के मस्तक में एक विचित्र विचार आया कि इस समय महाराज ध्यान में हैं, अतः ये कुछ भी नहीं बोलेंगे। भीमशा ने महाराज को आसन सहित उठाकर अपने बलवान् कंधे पर विराजमान कर शीघ्र ही नसलापुर की ओर प्रस्थान किया। सूर्योदय होते समय वे लगभग आठ मील दूर यमगरणी ग्राम पर्यन्त पहुँच गए थे। सामायिक पूर्ण हुई। आकाश में सूर्य को देखकर महाराज का मौन भी पूर्ण हुआ। उन्होंने भीमशा से कहा-“अरे बाबा! अब तो हमें नीचे उतरने दो।"पश्चात् भीमशा का साहस तथा भक्ति देख महाराज हँसने लगे। कुछ काल के पश्चात् कोगनोली की गुफा में महाराज को न देख अन्य ग्रामों के गृहस्थ महाराज को खोजते हुए उस स्थान पर आए। उन्होंने महाराज से अपने-अपने ग्राम में चातुर्मास हेतु विनय की। उस समय महाराज ने हँसते हुए भीमशा की ओर इशारा करते हुए कहा-“यमराज बैठा है। इससे कौन बच सकता है।?" इसके पश्चात् नसलापुर में ही महाराज का चातुर्मास हुआ। ऐसी भक्ति लोगों की महाराज के प्रति रहती थी। लोगों का महाराज के चरणों में इतना प्रेम रहता था कि वे अपने कुटुम्ब, परिवार का भी ममत्व छोड़कर महाराज की सेवार्थ अपने प्रिय प्राणों के परित्यागार्थ तैयार रहते थे। महाराज के समक्ष जब भीम सरीखा शक्तिशाली भीमशा आता था, तब महाराज के मुखमण्डल पर स्मित की मधुर रेखा आ जाती थी। संभवतः महाराज को भीमशा की अद्भुत भक्ति की स्मृति आ जाती रही होगी। विचारपूर्वक व्रतदान “आचार्य महाराज बहुत दूरदर्शी थे। उनसे जब कोई व्रत माँगता था, तो वे व्रत लेने वाले की संपूर्ण (वर्तमान तथा आगामी) परिस्थिति पर दृष्टिपात कर लेते थे। मैंने कोन्नूर में महाराज से पंचाणुव्रत लिए।" परिग्रह का परिमाण करते समय मैंने कहा-“मैं पाँच हजार रुपयों को रखने का परिमाण करता हूँ।" महाराज ने कहा, “इतने में तुम्हारा निर्वाह नहीं होगा। उससे आकुलता उत्पन्न होगी।" अतएव महाराज के कथनानुसार मैंने परिग्रह परिमाण लिया था। पात्र के योग्य प्रायश्चित्त एक बार मारवाड़ के नावा ग्राम में दिगम्बर जैन महासभा के अधिवेशन में मैं, बालगोंडा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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