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________________ चारित्र चक्रवर्ती एक अध्ययन भाषाशास्त्र की अपेक्षा यदि विचार किया जाये तो चारित्र-चक्रवर्ती यह विशेषण है ।। यह विशेषण किसी व्यक्ति विशेष का द्योतक नहीं है। किसी व्यक्ति विशेष का द्योतक न होते हुए चक्रवर्ती के गुणों से युक्त किसी भी पुरुष के साथ प्रयुक्त किया जा सकता है/ किया जाता है, किंतु यह विशेषण ही जिसका पर्यायवाची बन जाये ऐसा भो एक महामानव/महापुरुष इस पृथ्वी तल पर १६वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ व उसने बीसवीं सदी के मध्य तक इस धराधाम को पवित्र किया। जी हाँ !! यह महामना, महामानव और कोई नहीं, अपितु थे युग श्रेष्ठ परम पूज्य १०८ आचार्य शांति सागरजी महाराज, जिन्हें युग चारित्र चक्रवर्ती कह कर पुकारता था। इस महामना महामानव ने मात्र बुधजनों के मध्य नहीं और न ही मात्र सामान्य जनों के मध्य, अपितु बुधजनों व सामान्य, दोनों जनों के मध्य दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, संवेगव वैराग्य रूपी षट्खण्डों पर न सिर्फ अपना अधिपत्य सिद्ध किया, अपितु इसकी सिद्धि के मार्ग में आने वाले समस्त सचित्त, अचित्त व मिश्र बाधकों को भी अपने अनुकुल किया। ____ मैं इन्हीं चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी के श्री चरणों में नतमस्तक होता हुआ उनके चक्रवर्तीत्व को सिद्ध करने वाला आख्यान कहने जा रहा हूँ, भविजनों से विनती करता हूँ कि वे एकाग्रचित्त हो इस आख्यान को न सिर्फ सुनें, अपितु सुनकर गुनें भी, क्योंकि ऐसे महापुरुष का आख्यान सुनना व सुनकर गुनना निकट भव्यता को प्राप्त करने का अत्यंत सरल व सुगम मार्ग है। ____ मेरा जन्म आचार्य श्री के समाधिमरण के ४ वर्ष पश्चात् हुआ। यह सत्य इस तथ्य को उजागर करने को पर्याप्त है कि मेरा आचार्य श्री से प्रत्यक्षी करण नहीं हुआ, आचार्य श्री से मेरा परिचय परोक्ष रहा॥ किंतु नहीं, इस तथ्य को भी सर्वदेश समीचीन नहीं कहा जा सकता। इसे सर्वदेश समीचीन वही कहेगा जिसे आयु के दो भेदों का ज्ञान नहीं होगा। आयु दो प्रकार की होतो है। प्रथम वह जिसे कि जीव अपने साथ बांधकर लाता है, जो कि नाशवान है, चिर्स्थायी नहीं है और दूसरी वह जो कि व्यक्ति को अपने कृत्यों से मिलती है। श्रुत के माध्यम से उसके कृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी होते हुए, गुण ग्राह्यों का वास जिस कालं तक रहता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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