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________________ मुनिराज श्री आदिसागरजी महाराज शेडवाल के (श्री बालगोंडा देवगोंडा पाटील) परमपूज्य मुनि आदिसागर महाराज का सिवनी में २७ फरवरी, १६५७ को शिखरजी जाते समय आगमन हुआ था । उन्होंने आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के विषय में मेरी प्रार्थना पर निम्नलिखित बातें बताई : उन्होंने कहा- “चिकोड़ी तालुका, बेलगाम जिला में महाराज का लगभग १० वर्ष पर्यन्त विहार हुआ। उतने समय तक मैं चिकोड़ी की अदालत में सरकारी कर्मचारी था । अतः महाराज के दर्शन का बहुधा सौभाग्य मिला करता था । महाराज बहुत शास्त्रस्वाध्याय करते थे। शास्त्र की गूढ़ शंकाओं को सरलता से समझाते थे और सुन्दर समाधान करते थे।" लोकहितार्थ सूचना आचार्य महाराज ने एक स्मरण योग्य बात कही थी - "खुली सभा में ऐसी चर्चायें नहीं चलानी चाहिए, जिससे जनता की दिशाभूल होना सम्भव हो । " दूध निर्दोष है एक बार एक अन्य सम्प्रदाय के विद्वान् ने महाराज से पूछा था- "आप चमड़े के पात्र का पानी नहीं लेते? चमड़े के बर्तन का घी नही लेते, तब दूध को क्यों लेते हैं ? उसमें भी तो मांस का दूषण है । " महाराज ने कहा था- "आप लोग अनेक नदियों के जल को अत्यन्त पवित्र मानते हैं, किन्तु यह तो सोचिये कि वह जल कहाँ तक शुद्ध है, जिसमें कि जलचर जीव मल-मूत्र त्यागते हैं और जिसमें उनकी मृत्यु भी होती है ? अनेक दोषों के होते हुए भी यदि जल शुद्ध है, तो दूध क्यों नहीं ? एक बात और है, दूध की थैली गाय के शरीर में अलग होती है। जब गाय घास खाती है, तब पहिले उसका रस भाग बनता है। इसके बाद खून बनता है, इसलिये दूध में कोई दोष नहीं है । " फोटो खिंचवाना उन्होंने बताया- “एक बार मैं चिकोड़ी (बेलगाँव) में था । आचार्य महाराज उस समय मुनि अवस्था में सलापुर में विराजमान थे। मैंने चिकोड़ी के अनेक गृहस्थों के साथ नसलापुर जाकर महाराज से प्रार्थना की कि वे हमें फोटो खिंचवाने की मंजूरी प्रदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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