SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 620
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ चारित्र चक्रवर्ती आता है। दीक्षा आत्मकल्याण का साधन है, अहंकार पोषण का अंग नहीं है । विनोद द्वारा शिक्षा "आचार्य महाराज मधुर विनोद की चाशनी में कर्तव्यपालन की औषधि दिया करते थे । नेमिसागर महाराज ने बताया- एक दिन सामायिक करते समय मुझे तंद्रा आ गई, तब महाराज ने सामायिक के उपरान्त कहा - "नेमिसागर ! तुम सामायिक बहुत अच्छी करते हो ।" इस प्रकार आचार्य महाराज शिष्यों के जीवन को उज्ज्वल बनाते थे । " निद्रा का कारण सागर महाराज ने एक अनुभवपूर्ण बात कही- “विचार चालू रहने पर निद्रा नहीं आती । विचार बन्द होते ही निद्रा सताती है ।" एक बार की सामायिक का हाल नेमिसागर महाराज ने इस प्रकार बताया- “हम मुजफ्फरनगर में सामायिक को खड़े हुए थे । न जाने क्यों, हम तत्काल धड़ से जमीन पर गिर पड़े थे । " घुटनों के बल पर आसन .. मिसागर महाराज घुटनों के बल पर खड़े होकर आसन लगाने में प्रसिद्ध रहे हैं। मैंने पूछा - "इससे क्या लाभ होता है ?" उन्होंने बताया- “ इस आसन लिए विशेष एकाग्रता लगती है। इससे मन का निरोध होता है। बिना एकाग्रता के यह आसन नहीं बनता है । इसे " गोडासन" कहते हैं। इससे मन इधर-उधर नहीं जाता है और कायक्लेश- तप भी पलता है । दस-बारह वर्ष पर्यन्त मैं वह आसन सदा करता था, अब वृद्ध शरीर हो जाने से उसे करने में कठिनता का अनुभव होता है।" "" मैंने पूछा- “महाराज ! गोडासन करते समय घुटनों के नीचे कोई कोमल चीज आवश्यक है या नहीं ?" वे बोले - " मैं कठोर चट्टान पर भी आसान लगाकर जाप करता था । भयंकर से भयंकर गर्मी में भी गोडासन पाषाण पर लगाकर सामायिक करता था। मेरे साथी अनेक लोगों ने इस आसन का उद्योग किया, किन्तु वे सफल नहीं हुए। ध्यान के लिए सामान्यतः पद्मासन, पल्यंकासन और कायोत्सर्ग आसन योग्य हैं। अन्य प्रकार का आसन कायक्लेश रूप है। गोडासन करने की प्रारम्भ की अवस्था में घुटनों में फफोले उठ आए थे। मैं उनको दबाकर बराबर अपना आसन का कार्य जारी रखता था । " अग्निकाय का जीव उन्होंने यह भी बताया-“शिखरजी से लौटता हुआ संघ वैशाख मास में इलाहाबाद आया था। वहाँ मैं छत पर खड़े होकर कायोत्सर्ग करता था, उस समय बम्बई वाले संघपति आए। उन्होंने चटाई रखी और उस पर खड़े होकर मेरे ऊपर छाता लगा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy