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________________ श्रमणों के संस्मरण ४६३ क्या हमारे घर में कमी थी, जो ऐसा किया ?''मैंने कहा-“महाराज ! आपका संपन्न परिवार बहुतों को भोजन देता रहा है। उपरोक्त कोई कारण नहीं है, अतः महाराज! आप ही इस प्रश्न का समाधान कर सकते हैं।" । उन्होंने कहा-“हमने आत्मकल्याण के लिए यह पद ग्रहण किया है। आगमानुसार प्रवृत्ति के लिए यह मुद्रा धारण की है। आचार्यों ने कहा है कि २८ मूलगुणों का पालन करते हुए आत्मकल्याण करो, इससे मैं ऐसा करता हूँ। यश, मान, सम्मान के लिए यह पद अंगीकार नहीं किया है। यश तथा सम्मान में क्या है ? आहार के पश्चात् तुमने पूजास्तुति की या नहीं की, इसमें क्या है ? आगम कहता है कि मुट्ठी भर अन्न खा और जा। इससे आत्मकल्याण की साधना के एकमात्र उद्देश्य से हमने दिगम्बर मुद्रा धारण की है। “या शिवाय मोक्ष होणार नाही", इस पद के बिना मोक्ष नहीं होगा।" सांगली नरेश को उपदेश नांद्रे में मानस्तम्भ पूजा सन् १९५७ के ज्येष्ठ मास में वर्धमान स्वामी के समक्ष बड़े आनन्दपूर्व सम्पन्न हुई। उस मङ्गल प्रसङ्ग पर सांगली नरेश नांद्रे पधारे और महाराज के दर्शनार्थ गए। सामायिक के उपरांत महाराज का दर्शन सांगली नरेश ने किया। वर्धमान स्वामी के मुख पर तपस्या तथा आत्म-साधना का अद्भुत तेज था। योगदर्शन में प्रतिपादित योगी के भाव महाराज में स्पष्ट प्रतिभाषित हो रहे थे। मार्मिक उपदेश दर्शन से तृप्त होकर सांगली नरेश ने गुरुदेव से अमृत उपदेश की प्रार्थना की। वर्धमान महाराज ने कहा- “राजन् ! हमें अच्छी प्रकार पता है कि आपने अच्छी तरह शासन करके प्रजा को सुखी रखा है। अब स्वराज्य होने से आप पर से शासन-संचालन का भार दूर हो गया है और कोई चिन्ता का कारण नहीं है, अतएव हमारा यही कहना है कि आप आत्मकल्याण का मार्ग अंगीकार करें। आप प्रतिदिन कुछ समय मैं चैतन्य हूँ,जड़ से भिन्न हूँ, इस प्रकार आत्मचिन्तन में भी लगाया करें।" राजा का प्रभाव वर्धमान महाराज की वाणी सुनते ही सांगली सरकार को बहुत शांति मिली। अत्यन्त सन्तोष प्राप्त हुआ। उनके नेत्रों में अश्रु आ गए। वे बोले-“स्वामिन् ! हमें हजारों बड़े-बड़े साधु मिले, किन्तु आज तक किसी ने ऐसा मधुर आत्मा की ओर आकर्षित करने वाला उपदेश नहीं दिया।" इसके पश्चात् दिगम्बर मुद्राधारी इन ऋषिराज के चरणों पर सागंली नरेश ने अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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