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________________ श्रमणों के संस्मरण ४५७ जाप का क्रम प्रश्न-“महाराज! आपके जाप का क्या क्रम रहता है ?" उत्तर-“प्रभात में १८ माला, मध्याह्न में ५ माला, संध्या के समय ३६ माला, मध्यरात्रि में ५ माला फेरता हूँ और अन्य समय में मैं आत्मा का ध्यान करता हूँ।" प्रश्न- "उनके पास समय ज्ञात करने को घड़ी रखी थी। मैंने पूछा- “महाराज यह घड़ी आपकी नहीं है, हम तो आपके हैं न ?' उत्तर (सस्मित वदन से वे बोल उठे)-“आप भी हमारे हो तो हमारे साथ चलो। हमारे साथ क्यों नहीं रहते ? अरे बाबा! इस जगत् के मध्य में यह शरीर भी माझा नाहीं है। कोई भी पदार्थ मेरा नहीं है। 'अंतकाले कोणी नाहीं, जासी एकला' (अतंकाल में जीव का कोई साथी नहीं है, यह अकेला जायेगा)।" अभिषेक के बारे में महत्व की बात स्व. आचार्य शांतिसागर महाराज सदृश आगम की आज्ञा को मानने वाला विशुद्ध श्रद्धावान् कौन होगा, जिन्होंने आगम के आदेश को ध्यान में रखकर अपने सुदृढ़ शरीर को समाधिमरण की अग्नि में समर्पित कर दिया था। वे गुरुदेव कुंथलगिरि में सल्लेखना के आत्म चिंतन एवं आत्मविशुद्धि के अपूर्व काल में प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान के मन्दिर में जाकर देशभूषण, कुलभूषण भगवान का पंचामृत द्वारा किया गया वैभवयुक्त अभिषेक देखकर विशेष शान्ति प्राप्त करते थे। एक दिन तो महाराज ने प्रबन्धकों से कहा था-"तुम लोग अभिषेक की बोली में दोदो हजार, ढाई-ढाई हजार रुपया तक लेते हो; किन्तु अभिषेक की सामग्री में क्यों कमी करते हो?" महाराज के उलाहना देने पर दूसरे दिन घड़ों दही-दूध से भगवान का अभिषेक होने लगा था। महाराज बड़े ध्यान से जिनेन्द्र का अभिषेक देखते थे। वह उपवास का २८ वाँ दिन था। जब मैं महाराज के ठीक समीप खड़ा था, तब मैंने निकट से देखा कि वे अभिषेक को अत्यन्त तल्लीनता से देख रहे थे। उससे स्पष्ट होता था कि इन निर्ग्रन्थराज को सल्लेखना की उत्कृष्ट तपोमयी बेला में भी इस महाभिषेक दर्शन से महान् लाभ होता था, अतः गृहस्थों को तो यह अभिषेक अनन्त कल्याणदाता अवश्य होगा। इस सम्बन्ध में पक्ष का मोह छोड़कर हमें आगम से प्रकाश प्राप्त करना चाहिए। अभिषेक के विषय में आगम की आज्ञा . कोई-कोई स्वाध्यायप्रेमीभाई कहते हैं कि आगम में दूध, दही, रस आदि से अभिषेक नहीं लिखा है। उन बन्धुओं के लिए अपने मान्य ग्रन्थों के दो-चार प्रमाण देते हैं, ताकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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