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________________ . पावन समृति ४५० आत्मध्यान का उपाय एक दिन आर्यिका, विशालमती माताजी ने पूज्य गुरुदेव से पूछा-“महाराज! आप आत्मा का ध्यान करो, यह कहते हैं। किस प्रकार आत्मा का ध्यान किया जाय ?" महाराज ने सूत्ररूप में एक महत्व की बात कही-“गप बसाला सीखा- पूर्ण चुपचाप रहना सीखो।" इन थोडे सारपूर्ण शब्दों में योगिराज ने योगविद्या का रहस्य कह दिया। चुप बैठकर अंतर्जल्प बन्द करना सामान्य बात नहीं है। इस विषय को समझाते हुए महाराज ने कहा था-"स्त्रियों को अपने हृदय में स्फटिक की मूर्ति विराजमान करने उसका ध्यान करना चाहिए। पुरुषों को अपने शरीर में विद्यमान आत्मा के भीतर ही दखेना तथा विचारना चाहिए। काय गुप्ति, वचन गुप्ति तथा मन गुप्ति पालन करना चाहिए। अंतर्जल्प को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा करतेकरते मुक्ति मिलेगी।" उन्होंने यह भी स्वयं के अनुभव की बात कही थी-“सबेरे आठ बजे सूर्य की तरफ पीठ करके खड़े हो जाओ। कायोत्सर्ग होकर १५ मिनट आत्मा का ध्यान करो। कुछ अभ्यास के बाद तुमको शरीर बराबर स्फटिक की मूर्ति दिखाई पड़ेगी।" शिक्षण के विषय में आचार्य महाराज की आदत रही है कि जो भी काम किया जाय, वह श्रेष्ठ हो। वे संख्या (quantity) के स्थान पर गुण (quality) को महत्व देते थे। श्री शांतिसागर, अनाथाश्रम, शेडवाल के संचालक महोदय को महाराज ने कुंथलगिरि में कहा था, शेडवाल आश्रम में पाँच छात्र रहे, तो भी अच्छी तरह उसे चलाना। अधिक संख्या का मोह मत करना। कार्य अच्छा होना चाहिए।' इस आश्रम में विद्यानंद मुनिश्री ने शिक्षा प्राप्त की थी। आचार्यश्री उस शिक्षा को कल्याणप्रद कहते थे, जो "चारित्रं खलु धम्मो' की भावना को हृदय में प्रतिष्ठित करती है। ऐसी पाप-पोषणी-विद्या, जिसे सीखकर पश्चात जन्मान्तर में जीव नरक या तिर्यंच पयार्य की शोभा बढ़ावें, धर्मगुरु को कैसे इष्ट हो १. विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्वभारती विद्यालय में पहले केवल पांच विद्यार्थी थे। उनमें एक कविवर का पुत्र था, "During the first year Rabindranath had only five pupils, one of whom was his own son." कविवर के समक्ष एक विशेष आदर्श था। संख्या का मोह न था। आज वह संस्था विश्वविद्यालय बनकर अत्यंत समृद्ध स्थिति में है। जो लोग संख्या विश्वविद्यालय बनाकर अत्यंत समृद्ध स्थिति में है। जो लोग संख्या की ममता के बीमार है, उनको आचार्य महाराज तथा लौकिक-जगत में विख्यात कविवर रवीन्द्रनाथ की दृष्टि से प्रकाश प्राप्त करना चाहिए। Rabindranath Tagore by sybes page 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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