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________________ पावन समृति ४४८ कुंथलगिरि आ रही है, किन्तु उनके दिवगंत होने को पन्द्रह वर्ष हो गये, अब तक वह मूर्ति नही आ पाई। इसका रहस्य क्या है, यह अज्ञात है। सौभाग्य की बात है कि नातेपुते के धर्मात्मा दानी भाई गौतमचंद नेमचंद गांधी ने कुंथलगिरि पर बाहुबली की एक बड़ी मनोज्ञ मूर्ति की सन् १९७२ में प्रतिष्ठा करा कर विराजमान करा दिया। सुख का रहस्य एक व्यक्ति ने महाराज के समक्ष प्रश्न किया-"महाराज! आपके बराबर कोई दुःखी नहीं है। कारण, आपके पास सुख के सभी साधनों का अभाव है।" महाराज ने कहा, “वास्तव में जो पराधीन है, वह दुःखी हैं। जो स्वाधीन है, वह सुखी है। इन्द्रियों का दास दुःखी है। हम इन्द्रियों के दास नहीं हैं। हमारे सुख की तुम क्या कल्पना कर सकते हो? इन्द्रियों से उत्पन्न सुख मिथ्या है। आत्मा के अनुभव द्वारा प्राप्त सुख की तुलना में वह नगण्य है।" विशुद्ध जीवन का प्रभाव आचार्यश्री ऐसे निरीह और निस्पृह तपस्वियों में थे, जो अपने तप के द्वारा प्राप्त फल या विशेष सामर्थ्य के विषय में पूर्णतया निरपेक्ष रहते थे, फिर भी कुछ लोगों ने साधुराज के उज्ज्वल व्यक्तित्व द्वारा लाभ उठाया है। सिर की पीड़ा वेडणी ग्राम के एक धनिक बन्धु विपुल द्रव्य खर्च करते-करते थक गये थे, किन्तु उनके सिर की पीड़ा नहीं जाती थी। उसने आचार्य महाराज के चरणों में नम्र भाव से विनती की और अपनी दारुण व्यथा सुनाई। दया भाव से आचार्यश्री ने उस व्यक्ति के सिर पर अपनी पिच्छी रख दी। तत्काल वह हमेशा के लिए उस पीड़ा से छूट गया। वास्तव में जड़ प्रयोग जहाँ हार जाते हैं, वहाँ पर योगियों का चमत्कार जगत् को चकित कर देता है। सर्पदंश फलटण के श्री तलकचंद देवचंद गांधी के यहाँ के दस वर्ष के बालक को साँप ने काट दिया। आचार्य महाराज के समक्ष वह बालक लाया गया। उसे ध्यान से देखकर महाराज ने कहा, “चिन्ता मत करो। यह ठीक हो जायेगा। इसके पश्चात् वह बालक निर्विष हो गया। कुष्ठ रोगी नसलापुर में एक व्यक्ति पापोदय से गलित कुष्ठ की बीमारी से दुःखी हो रहा था। वह महाराज की सेवा में पहुँचा। उसने बहुत अनुनय-विनय की। गुरुदेव ने उसे ब्रह्मचर्य व्रत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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