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चारित्र चक्रवर्ती दल के लोग उसको अयोग्य बताकर विरोध करते थे। सुधारक कहे जाने वाले भाई उसका स्वागत कर रहे थे। इस प्रंसग से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उक्त कानून के विचार के जन्मदाता आचार्य महाराज थे। यथार्थ में वे बड़े प्रगतिशील तथा उज्ज्वल मौलिक विचारक थे। उन सरीखा सुधारक कौन हो सकता है, जिन्होंने असंयम तथा मिथ्यात्व के विषपान में निमग्न जगत् को रत्नत्रय की अमृत औषधि पिलाई। किसी का भय नहीं किया। पंचम काल का भी विचार नहीं किया। उनका साहसी तथा जिनेन्द्रभक्त हृदय यह कहता था-“यह पंचमकाल का बाल्यकाल है। इससे इसका जोर नहीं चलेगा। यदि प्रयत्न किया जाय, तो धर्म तथा सत्कार्यों के क्षेत्र में नियम से सफलता प्राप्त हो सकती है। डरकर घर में बैठने से काम नहीं चलेगा।"
सचमुच में उन महापुरुष ने पंचमकाल के कलंक को मिटाकर धार्मिक प्रवृत्ति को नवजीवन प्रदान किया। युगधर्म कहकर जहाँ जन-समुदाय पापाचार और विषयों की अंध आराधना की ओर जा रहा था, वहाँ ये महापुरूष उस उद्धेलित लोकप्रवृत्तिरूप सिन्धु के विरुद्ध खड़े हो गये और इन्होने ऐसे-ऐसे महान् कार्य किये, जिनको सोचकर जगत् को आश्चर्य हुए बिना नहीं रह सकता। वे सभी प्रवृत्तियों तथा सुधारों के समर्थक थे, जिनके द्वारा सम्यक्त्व का पोषण होता है, संयम का संवर्धन होता है। महाराज की विशिष्ट विचारकता के कारण वे स्थितिपालकों के प्राण थे, तो सुधारकों के श्रद्धाभाजन भी थे। वे न्यायदृष्टियुक्त अनेकान्ती साधुराज थे। विवेक उनका मार्ग-दर्शन रहा है। दिव्यदृष्टि
आचार्यश्री का राजनीति से तनिक भी सम्बन्ध नहीं था। समाचार-पत्रों में जो राष्ट्रकथा आदि का विवरण छपा करता है, उसे वे न पढ़ते थे, न सुनते थे। उन्होंने जगत की ओर पीठ कर दी थी। आज के भौतिकता के फेर में फँसा मनुष्य क्षण-क्षण में जगत् के समाचारों को जानने को विह्यल हो जाता है। लंदन, अमेरिका आदि में तीन-तीन घंटों की सारे विश्व की घटनाओं को सूचित करने वाले बड़े-बड़े समाचार-पत्र छपा करते हैं। आत्मा की सुध-बुध न लेने वाले लोग अपना सारा समय शारीरिक और लौकिक कार्यों में ही व्यतीत करते हैं। आचार्यश्री के पास ऐसा व्यर्थ का क्षण नहीं था, जिसे वे विकथाओं की बातें में व्यतीत करें। फिर भी उनकी विशुद्ध आत्मा कई विषयों पर ऐसा प्रकाश देती थी, कि विशेषज्ञों को भी उनके निर्णय से हर्ष हुए बिना न रहेगा। महायुद्ध का परिणाम
जब सन् १९४० में द्वितीय महायुद्ध छिड़ा था। आचार्यश्री के कानों में उसके समाचार पहुंचे, तब उनहोंने सहज ही पूछा, यह युद्ध आरम्भ किसने किया ? उनको बताया गया
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