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________________ ४२६ चारित्र चक्रवर्ती तुमको व्यापार करना चाहए।" इससे उन लोगों को प्रकाश मिल सकता है, जो नैष्ठिक बनने के पूर्व ही त्यागी-उदासीन का रूप धारण कर स्वावलंबन की प्रवृत्ति से विमुख हो जाया करते हैं। ऐसे लोग समाज पर भार रूप नहीं, तो क्या है ? असाधारण ज्ञान-शक्ति महाराज के विचारों में मौलिकता रहती थी, उनकी अनेक विषयों में दक्षता देख आश्चर्य होता था। वास्तव में बात यह है कि जैसे उनका चरित्र अपूर्व था, उसी प्रकार उनका क्षयोपशम भी असाधारण रहा है। भारत के कोने-कोने से आगत हजारों व्यक्तियों का नाम आदि उनको ऐसा ही याद रहा है, जैसे किसी बुद्धिमान तरुण को सब बातें याद रहती हैं। महाराज ने मुझसे कहा था-"जिस चीज को हम एक बार ध्यान से देख लेते हैं, उसे नहीं भूलते हैं।" जब हम महाराज की जन्मभूमि भोज में पहुंचे थे और इनके विषय में परिचयात्मक सामग्री का संग्रह कर रहे थे, तब यह ज्ञात हुआ था कि महाराज बाल्यकाल से ही असाधारण स्मृतिशक्ति समन्वित रहे हैं। उनकी प्रतिभा, शास्त्राभ्यास, धारणाशक्ति आदि के कारण देश के बड़े से बड़े शास्त्रज्ञ तथा लोक-विद्या के निष्णात लोग उन साधुराज के पास से ज्ञानसंवर्धक सामग्री का संचय करते थे। उनकी तर्कशक्ति भी महान् थी। श्रेष्ठ कानून वेत्ता भी उनकी तर्कशक्ति को प्रणाम किये बिना नहीं रहता था। बाल विवाह प्रतिबंधक कानून के प्रेरक भारत सरकार के द्वारा बाल-विवाह कानून निर्माण के बहुत समय पहले ही आचार्य महाराज की दृष्टि उस ओर गयी थी। उनके ही प्रताप से कोल्हापुर राज्य में सर्वप्रथम बालविवाह प्रतिबंधक कानून बना था। इसकी मनोरंजक कथा इस प्रकार है। कोल्हापुर के दीवान श्री ए.बी. लढे दिगम्बर जैन भाई थी। श्री लढे की बुद्धिमता की प्रतिष्ठा महाराष्ट्र प्रान्त में व्याप्त थी। कोल्हापुर महाराज उनकी बात को बहुत मानते थे। श्री लढे बंबई प्रांत के कुशल वित्त मंत्री बने थे। एक बार कोल्हापुर में शाहुपुरी के मंदिर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो रही थी। वहाँ आचार्यश्री विराजमान थे। दीवान बहादुर श्री लढे प्रतिदिन सायंकाल के समय महाराज के दर्शनार्थ आया करते थे। एक दिन लट्टे महाशय ने आकर आचार्यश्री के चरणों को प्रणाम किया। महाराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा-“तुमने पूर्व में पुण्य किया है, जिससे तुम इस राज्य के दीवान बने हो और दूसरे राज्यों में तुम्हारी बात का मान है। मेरा तुमसे कोई काम नहीं है। एक बात है, जिसके द्वारा तुम लोगों का कल्याण करा सकते हो। कारण, कोल्हापुर के राजा तुम्हारी बात को नहीं टालते।" दीवान बहादुर लढे ने कहा-“महाराज ! मेरे योग्य सेवा सूचित करने की प्रार्थना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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