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________________ इक्कावन आमुख १६६३ पर कहा था-“आज के संकट के समय महावीर भगवान् का इंद्रियजय तथा संयम, वीरता आदि गुणों की बड़ी आवश्यकता है।" काम क्रोध, लोभ, मान, माया आदि विकारों के कारण ही यह जीव अविनाशो आनन्द को नहीं प्राप्त कर पाता। अबोध बालक मिट्टी के ढेर में अवर्णनीय सौन्दर्य तथा विभूति की कल्पना करके प्रसन्न होता है, पश्चात् ज्ञान के विकास होने पर उसे अपनी भूल तथा भोलेपन का पता चलता है, इसी प्रकार मोहरूपी अन्धकार के दूर होने पर मनुष्य को वस्तुस्थिति का सम्यक् अवबोध होता है। इस मोह के कारण लौकिक विद्या के महान् विद्वान तथा सर्व प्रकार के वैभवादि सम्पन्न प्राणी अज्ञवत् चेष्टा करते हैं। जब यह जीव चिंतन अवस्था में पदार्थो के तथा अपने स्वरूप पर विचार करता है, तब यह सोचता है कि मैं अब तक गहरे अन्धकार में था, जो मैंने अपने आत्मस्वरूप को नहीं जाना। विश्व के महापुरूष आत्मा के ज्ञान को सुख का मूल बीज बताते हैं। “आत्मानं विद्धिं (Know Thyself) आदि शब्द उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालते हैं। सर्वथा एकाकी जीवन बिताने वाला कन्फ्यूशस कहता था-“मैं पहले अपने को भलीभाँति जानना चाहता हूँ। मेरा अनुभव है कि अपने को जानना बड़ा कठिन कार्य है।" महर्षि कुन्दकुन्द ने लिखा है (मोक्षप्राभृत-६५) दुक्खे णज्जइ अप्पा अप्पाणाऊण भावणा दुक्खं। भविय-सहावपुरिसो विसएसु विरज्जए दुक्खं ॥ अर्थ : इस आत्मा का ज्ञान बहुत कठिनता से होता है। आत्म-बोध होने पर उसको भावना कठिन कार्य है। आत्मा की भावना करने वाला पुरूष बड़ी कठिनता से विषयों से विरक्त होता है। भोगासक्ति त्यागना आत्मविकास का प्राण है। ___जवाहरलाल नेहरू ने कहा है-"त्याग, अनुशासन, संयम के बिना कोई भी मुक्ति की आशा नहीं है। गांधीजी सारा बल चरित्र पर देते थे।"आत्मस्वरूप की उपलब्धि के लिए विशेष ज्ञान भी आवश्यक है। ऐसे जीव जिनके मन नहीं है, आत्मोपलब्धि के उद्योग से वंचित हो जाते हैं। मनुष्य जीवन में सहज ही सर्वप्रकार की अनुकूल सामग्री है, किन्तु यह जीव भूल जाता है कि यदि मैंने शीघ्र हित-सम्पादन नहीं किया, तो मेरा जीवन सूर्य अस्तङ्गत हो जायगा। इमरसन ने लिखा है- Life is too short to waste (जीवन इतना थोड़ा है कि उसमें से क्षणभर भी बरबाद नहीं किया जा सकता।) अतःआत्मविकास को ओर ध्यान जाना चाहिए। 'असली आनन्द का भण्डार बड़े भवनों तथा भौतिक विकास1. "you will do the greatest services to the state if instead of raising the roofs of the houses, you will raise the souls of the Citizens, for it is better that great souls should dwell in small houses than that mean slaves should lurk in great ones." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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