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चारित्र चक्रवर्ती महाराज उत्कृष्ट योग-साधना में संलग्न हैं। घबड़ाहट, वेदना आदि का लेश नहीं था। दुर्भाग्य की बात
लगभग दो घंटे पश्चात् मैं बाहर गया महाराज की समस्त स्थिति बार-बार मन के आगे घूमती रहती थी। सोचा था, पश्चात् भी महाराज के पास जाकर स्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करूँगा, किन्तु ऐसा होना असंभव था। वहाँ जो लोग प्रबन्ध कर रहे थे, वे यह सोच ही नहीं सकते थे कि ऐसे बहुमूल्य क्षणों में आचार्य महाराज के पास कैसे लोगों को रहना चाहिए। महाराज की जीवन भर उज्ज्वल सेवा करने वाले बड़े-बड़े व्यक्तियों को ये अंतराय रूप प्रहरी भीतर नहीं जाने देते थे। उस समय विचित्र कर्म-विपाक देखकर आश्चर्य होता था। मन बहुत दुःखी भी होता था। भवितव्यता के विरुद्ध किसका वश चलता है। बहुत गम्भीर समय था वह। समाधि मन्दिर पर मंगल कलश लगने को था। प्रभात में स्वर्ग प्रयाण
जैसे ३५ दिन बीते, ऐसी रात्रि भी व्यतीत हो गई। नभोमण्डल में सूर्य का आगमन हुआ। घड़ी में छ: बजकर पचास मिनिट हुए थे। चारित्र चक्रवर्ती साधु शिरोमणि क्षपकराज ने स्वर्ग को प्रयाण किया। उत्प्रेक्षा __ यह समाचार सुनते ही मन में विचार आया कि प्राणों ने रात्रि को ही प्रयाण की तैयारी की थी, किन्तु शायद उन्होंने सोचा कि इन साधुराज के जीवन में सूर्यप्रकाश के बिना अन्धकार में कभी भी यात्रा नहीं कि, तब इसी महाप्रयाण का कार्य अन्धकार में करना इनकी चिरकालीन प्रवृत्ति के प्रतिकूल होगा। अत: वे प्राण रुके रहे और प्रभाकर को देखते ही वे शरीर को निर्जीव बना स्वर्ग चले गए।
वह दिन रविवार का था। अमृतसिद्धि योग था। १८ सितम्बर भादौ सुदी द्वितिया का दिन था। उस समय हस्त नक्षत्र था। . धर्म का सूर्य अस्तंगत ___ मैं तुरन्त पर्वत पर पहुंचा। कुटी में जाकर देखा। वहाँ आचार्य महाराज नहीं थे। चारित्र चक्रवर्ती गुरुदेव नहीं थे। आध्यात्मिकों के चूड़ामणि क्षपकराज नहीं थे। धर्म के सूर्य नहीं थे। उनकी पावन आत्मा ने जिस शरीर में चौरासी वर्ष निवास कियाथा, केवल वह पौद्गलिक शरीर था। वही कुटी थी किन्तु वह अमर-ज्योति नहीं थी। हृदय में बड़ी वेदना हुई। गहरी मनोवेदना
प्रत्येक के हृदय में गहरी पीड़ा उत्पन्न हो गई। बंध के मूल कारण बंधु का यह वियोग नहीं था। अकारण बंधु, विश्व के हितैषी आचार्य परमेष्ठी का यह चिर वियोग था। इस
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