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________________ सल्लेखना ३८४ चाहिए। शराब पीने वाला किस प्रकार मद्य-त्याग का उपदेश देकर लोगों को प्रभावित कर सकता है? अत: यह आवश्यक है कि धर्मप्रचार के योग्य इस युग में समाज वीतरागशासन की लोक में प्रतिष्ठा-वृद्धि निमित्त का निर्माण करें। ज्ञानवान संयम को धारण करें और संयमी व्यक्ति सरस्वती के प्रति विरक्ति का भाव त्याग उसकी आराधना करें, ऐसे लोगों द्वारा ही धर्म का प्रसार होता है। भगवती आराधना में लिखा है-“श्रेयोर्थिना जिनशासनवत्सलेन-कर्तव्य-एव नियमेन हितोपदेश:"(कल्याण चाहने वाले जिनशासन के प्रेमी सत्पुरुष को नियम रूप से हित का उपदेश देना चाहिए।) त्यागियों के लिए विचारणीय __ आचार्य शांतिसागर महाराज की धर्मप्रचार की बात त्यागियों के बहुत काम की है। धर्म प्रभावना द्वारा यह जीव तीर्थंकर की पदवी तक को प्राप्त करता है। प्राय: देखने में आता है कि त्यागी लोग व्रत लेने के बाद स्वाध्याय से इस तरह विमुख रहते हैं, जिस प्रकार वे सांसारिक प्रपंच की बातों से अलग रहते हैं। उनमें से कुछ लोगों से बात करने का मौका आया, तो वे शिवमूर्ति साधु को अपना आदर्श बताते हैं, जिन्होंने 'तुष-मास भिन्नं' अर्थात् तुष और उड़द जैसे भिन्न हैं ऐसे ही शरीर और जीव जुदे-जुदे हैं। मात्र ज्ञान द्वारा कैवल्य को प्राप्त किया था। आश्चर्य है कि शास्त्रों से अनुचित स्वार्थ की सिद्धिकी जाती है। उचित तो यह था कि उससे आत्मा के लिये प्रेरणा प्राप्त करनी थी। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि अभीक्ष्णज्ञानोपयोग के द्वारा यह जीव सुरेन्द्र-वंद्य-जिनेन्द्र की पदवी पाता है। तीर्थंकर बनता है। आर्ष आगम का अभ्यास अकथनीय कल्याणप्रद है। मिथ्याधारणा __ कोई - कोई सम्यक्त्व की चर्चा के विषय में महान् प्रेम दिखाते हुए संयमी के प्रति तिरस्कार की भावना व्यक्त करते हैं और अपना आदर्श अंतर्मुहूर्त में सिद्धि प्राप्त करने वाले चक्रवर्ती भरत को कहते हैं। ऐसे लोग यह स्मरण रखने की कृपा नहीं करते हैं कि चक्रवर्ती भरतसदृश अल्पतम काल में सिद्धि, आदिनाथ भगवान् से लेकर वीर भगवान् तक २४ तीर्थंकरों में किसी को न मिली, तब क्या हमें तीर्थंकरों से भी अपने को बड़ा और विशुद्धि का भण्डार सोचना चाहिए? भरतराज देशव्रतीथे यह स्मरण रहना चाहिए। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि आज के लोगों में युक्तिसंगत बात को शिरोधार्य करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों आदि के प्रभाववश प्राय: शिक्षित वर्ग के अंत:करण पर मूढ़ता से प्रसूत तथा विज्ञान विरुद्ध मान्यताओं का भार नहीं लादा जा सकता है। जैन धर्म का कथन अनुभवयुक्त तथा विज्ञान के पूर्णतया अनुरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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