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परिक्षकों द्वारा की गई परीक्षाव आचार्य श्री (कटनी, म.प्र. के) कुछ शास्त्रज्ञों ने सूक्ष्मता से आचार्यश्री के जीवन को आगम की कसौटी पर कसते हुए समझने का प्रयत्न किया। उन्हें विश्वास था कि इस कलिकाल के प्रसाद से महाराज का आचरण भी अवश्य प्रभावित होगा, किन्तु अन्त में उनको ज्ञात हुआ कि आचार्य महाराज में सबसे बड़ी बात यही कही जा सकती है कि वे आगम के बंधन में बद्ध प्रवृत्ति करते हैं और अपने मन के अनुसार स्वच्छंद प्रवृत्ति नहीं करते हैं। __ मैंने (लेखक-पं. सुमेरूचंद्रजी दिवाकर ने) भी आचार्यश्री के जीवन का निकट निरीक्षण नहीं किया था। अतः साधु विरोधी कुछ साथियों के प्रभाववश मैं पूर्णतया-श्रद्धा शून्य था। कार्तिक की अष्टाह्रिका के समय काशी अध्ययन निमित्त जाते हुए एक दिन के लिए यह सोचकर कटनी ठहरा कि देखें इन साधुओं का अन्तरंग जीवन कैसा है ? ___ उनके पास में पहुंच कर देखा, तो मन को ऐसा लगा कि कोई बलशाली चुंबक चित्त को खेंच रहा है। मैंने दोष को देखने की दुष्ट बुद्धि से ही प्रेरित हो संघ को देखने का प्रयत्न किया था, किन्तु रंचमात्र भी सफलता नहीं मिली। संघ गुणों का रत्नाकर लगा। ___ हृदय में यह भाव बराबर उठते थे कि मैंने कुसंगतिवश क्यों ऐसे उत्कृष्ठ साधु के प्रति अपने हृदय में अश्रद्धा के भावों को रखने का महान् पातक किया ? संघ के अन्य साधुओं का जीवन भी देखा, तो वे भी परम पवित्र प्रतीत हुए । सोना जानिए कसे, आदमी जानिए बसे' -सुवर्ण की परीक्षा कसौटी पर कसे बिना नहीं होती है, आदमी की जाँच के लिए उसके साथ कुछ काल तक बातचीत होना आवश्यक है। जीवन तो आत्मा का गुण है, वह पुद्गल लेखनी के द्वारा कैसे बताया जा सकता है ? प्रत्यक्ष संपर्क से ज्ञात हो जाता है, कि इस आत्मा में कितनी पवित्रता और प्रकाश है ? मेरा सौभाग्य रहा जो मैं आचार्यश्री के चरणों में आया और मेरा दुर्भाव तत्काल दूर हो गया। मेरे कुछ साथी तो आज भी सच्चे गुरुओं के प्रति मलिन दृष्टि धारण किये हुए हैं : 'बुद्धिः कर्मानुसारिणी' खराब होनहार होने पर दुष्ट बुद्धि होती हैं।
-मुल शीर्षक : प्रभावना, पृष्ठ २०३-२०४ उपशीर्षक : आगम भक्त, आचार्य चरणों का प्रथम परिचय और पश्चात्ताप
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