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________________ ३४८ चारित्र चक्रवर्ती अप्रैल सन् १९५२ की महावीर जयंती के अवसर पर चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को विंध्यप्रदेश के लेफ्टनेंट गवर्नर की अध्यक्षता में रीवा में प्रभावशाली जैन महोत्सव हुआ था। आत्मा का भोजन दूसरे दिन प्रीतिभोज था। उस दिन हमारा उपवास था। लेफ्टेनेंट गवर्नर सा. ने हम से जैन उपवास के विषय में चर्चा छेड़ दी। उस समय मैंने कहा था, “जैन उपवास का लक्ष्य आत्मा की निर्मलता का संपादन करना है। उस समय लौकिक कार्यों में लगे रहने पर उसे उपवास न कहकर लंघन कहते हैं।" मैंने उन्हें कहा था, “लोग यह सोचते हैं कि उपवास के दिन आत्मा को जरा भी भोजन नहीं मिलता है। यह बात वास्तविक नहीं है। यथार्थ बात तो यह है कि उस दिन शरीर को भोजन नहीं मिलता है किन्तु आत्मा को निरन्तर सद्विचार तथा पुण्यभावना रूप श्रेष्ठ आहार प्राप्त होता है।" मैंने कहा था-"It is fasting of the body but feasting of the soul. (शरीर की अपेक्षा उपोषण है, किन्तु आत्मा की दृष्टि से वह उपोषण नहीं है।) उस समय तो आत्मा बढ़िया-बढ़िया मधुर आहार करती है।" आत्मबल आत्मबल जागृत होने पर बड़े-बड़े उपवास आदि तप सरल दिखते हैं। बारहवें उपवास के दिन लगभग आधा मील चलकर मन्दिर से आते हुए पूज्य नेमिसागर मुनिराज ने कहा था-“पण्डितजी ! आत्मा में अनंत शक्ति है। अभी हम १० मील पैदल चल सकते हैं।" ____ मैंने कहा था-"महाराज, आज आपके बारह उपवास हो गये है।" वे बोले, “जो हो गये, उनको हम नहीं देखते हैं। इस समय हमें ऐसा लगता है, कि अब केवल पाँच उपवास करना है।" मैंने उपवास के सत्रहवें दिन पूछा कि-"महाराज! अब आपके पुण्योदय से सत्रहवाँ उपवास का दिन है तथा आप में पूर्ण स्थिरता है। प्रमाद नहीं है, देखने में ऐसा लगता है मानों तीन-चार उपवास किए हों।" उपवास के समय आत्मा का उद्बोधन वे बोले-“इसमें क्या बड़ी बात है, हमें ऐसा लगता है कि अब हमें केवल एक ही उपवास करना है।" उन्होंने यह भी कहा था-"भोजन करना आत्मा का स्वभाव नहीं है। नरक में अन्न-पानी कुछ भी नहीं मिलता है। सागरों पर्यन्त जीव अन्न-जल नहीं पाता है, तब हमारे इस थोड़े से उपवास की क्या बड़ी चिन्ता है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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