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________________ ३३६ प्रकीर्णक स्वजीवन अपने विषय में उन मुनिनाथ ने कहा था, “हमें अपनी आत्मा के सिवाय परपदार्थ की चिन्ता नहीं है। हम तो हनुमान सरीखे हैं। जिनका मन्दिर गाँव के बाहर रहता है। गाँव के जलने से हनुमान का क्या बिगड़ता है ? इसी प्रकार संसार में कुछ भी हो जाय, तो हमें उसका क्या डर? हम किसी से नहीं डरते, केवल जिनेन्द्र भगवान् की वाणी से डरते हैं।" बालकों पर अनुराग मैंने देखा, कि निर्विकार वृत्ति वाले बालकों के प्रति महाराज का नैसर्गिक अनुराग रहा है। एक दिन सेठ चन्दूलाल सर्राफ का छोटा बालक महाराज के सामने आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर महाराज बोले-“क्या सीखते हो सेठजी ? वह बच्चा चुप रहा। महाराज के मुखमंडल पर मधुर हास्य की आभा अंकित हो गयी। क्या धर्म सरल है? __हमारे भाई अभिनन्दन कुमार (एडवोकेट) ने गुरुदेव से कहा-“महाराज! श्रवणबेलगोला से लौटते समय बंगलोर में एक विद्वान तथा प्रभावशाली श्वेताम्बर साधु मिले थे। उन्होंने कहा था कि यह जैनधर्म अत्यन्त सरल है । हर एक व्यक्ति बिना कठिनता से पालन कर सकता है।" महाराज ने सस्मित वदन से कहा-“अरे ! यह धर्म सरल नहीं है। इसका पूर्णरीति से पालन करना अत्यंत कठिन है। इसका यह अर्थ नहीं है कि फिर कोई दूसरा इसे पाल ही नहीं सकता। तुम्हें पूरा पालन करने को कौन कहता है ? जितनी शक्ति है उसके अनुसार ईमानदारी के साथ यदि थोड़ा भी इस धर्म का श्रद्धा तथा दृढ़तापूर्वक पालन किया, तो तुम्हारा कल्याण होगा। अनेक जीवों ने दृढ़तापूर्वक थोड़ा-सा इन दयामय धर्म का पालन कर सुख प्राप्त किया है। इस दृष्टि से वह सरल भी है।" केशलोच __ महाराज ने बताया था, "हमने क्षुल्लक अवस्था में ही केशलोंच करना आरंभ कर दिया था। क्षुल्लक बनने के पहले केशों का लोच करना मार्ग के विरुद्ध है।" तपस्वी मुनियों का चरित्र उन्होंने हमारी प्रार्थना पर अपने संपर्क में आने वाले कुछ मुनियों का चरित्र संक्षेप में बताया था: १. उन्होंने कहा था-“एक सिद्धप्पा स्वामी नाम के निर्ग्रन्थ मुनि थे। वे सदा णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं' यह जाप करते रहते थे।" २. “दक्षिण के गुड़मंडी ग्राम में एक और मुनराज थे। उनकी तपस्या महान् थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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