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________________ आमुख तियालीस विशुद्ध बनाने योग्य सर्व प्रकार की अनुकूलता रहती है, वे कीर्ति की लालसा से बाहर से आकुलताओं को खरीदने का प्रयत्न करते हैं और दोष कर्मो को देते फिरते हैं। ____ कवि भूधरदासजी ने लिखा है - "सुबुद्धि रानी से उसकी एक सखी कहती है, कि तेरा पति आत्मदेव दुःखी हो रहा है। वह तो बहुत अच्छा है, किन्तु इस पुद्गल (जड़ तत्त्व) ने उसे कष्ट में डाल दिया है।" कवि के शब्दों में - कहै एक सखी सुन री सुबुद्धि रानी। तेरा पति दुःखी देख लागे उर आर है। महा अपराधी एक पुद्गल है छहों माँहि। सोई दुःख देत दीखे नाना परकार है। अपने पति की दूषित वृत्ति की आलोचना करती हुई सुबुद्धि देवी न्यायपूर्ण बात कहती है, कि मेरा पति ही अपने दुःख का बीज बोता है। उसका दोष दूसरे के ऊपर लादना ठीक नहीं है। सुबुद्धि की अपनी प्रिय सखी से अपने पति की कटु समालोचना कितनी सत्य है, यह प्रत्येक तत्वज्ञ सोच सकता है - कहत सुबुद्धि आली कहा दोष पुद्गल को, अपनी ही भूल लाल होत आप ख्वार है। खोटो दाम आपनी सराफै कहा लगे वीर, कोउ को न दोष मेरो भोंदू भरतार है। अविद्या के कारण इस जीव की रुचि इतनी विकृत हो गई है कि यह आत्मा के अहितकारी कार्यों में आनन्द की कल्पना करता है। यह बालू को पेर तेल पाने को महाकष्ट उठाता है, किन्तु बालू के भीतर तेल का अभाव होने से वह उद्योग व्यर्थ जाता है, इसी प्रकार बाह्य पदार्थ में आनन्द न होने से उसकी वहाँ खोज सर्वदा निराशा रूप में ही परिणित होती है। ___ दार्शनिक इमरसन ने कहा है- एक समय अनेक लोगों ने बहुत शस्य-श्यामला भूमि पर अधिकार जमाया। वे अपनी जागीर में घूमते हुए गर्व का अनुभव कर रहे थे। वे कहते थे यह भूमि तो हमारी है। उस समय पृथ्वी से प्रतिध्वनि उत्पन्न हुई - They call me theirs Who so controlled me; Yet everyone Wished to stay, and is gone, How am I theirs If they cannot hold me But I hold them ? अर्थ : जिन्होंने मुझ पर अधिकार जमाया, उन्होंने कहा कि यह पृथ्वी हमारी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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