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________________ ३२६ चारित्र चक्रवर्ती ऐसे हिंसाप्रचुर वातावरण में आचार्य महाराज ने श्रेष्ठ अहिंसाव्रत के पालक दिगम्बर मुद्राधारी अनेक मुनियों को उत्पन्न कर दिया तथा अनेक स्त्रियों को आर्यिका की दीक्षा दी। इससे चतुर्विध संघ का दर्शन होने लगा। उनके चारित्र रूपशासन की बहिर्जगत् तथा अंतर्जगत् में वृद्धि हुई हैं। विषयान्ध व्यक्ति की आँखें इस चारित्र के तेज को देखते समय बंद हो जाती है। मुमुक्षु तथा भद्र प्राणी ही उसका महत्व जानते हैं। गुरुकृपा गजपंथा के पंचकल्याणक महोत्सव से मैं जब चलने लगा, तब मैं महाराज की सेवा में पहुंचा। महाराज ने कहा, “तुम्हारे पिताजी का तार आया है। इससे घर जा सकते हो, किन्तु भूलना मत कि शास्त्रों में पाँच प्रकार के पिता कहे गए हैं। उनमें गुरु का स्थान भी है, फिर कब आओगे?" मैंने कहा, “महाराज, बिना पुण्योदय के आपके दर्शन नहीं हो सकते, शीघ्र ही आने का प्रयत्न करुंगा।" ___ मांगीतुंगी क्षेत्र में आचार्य संघ विराजमान था। वहाँ पंचकल्याणक पूजा थी। वहाँ आचार्य महाराज के दर्शन हुए। वहाँ से महाराज का विहार हो गया। रास्ते में महाराज के समीप पहुँचने का मौका मिला। एक खेत में मुनि महाराज को बैठे देखकर बड़ा अच्छा लगता था। विकृतिविहीन प्रकृ ति के मध्य प्राकृतिक मुद्रा तथा प्राकृतिक जीवन वाले महापुरुष की स्वाभाविक शोभा निराली होती है। मैंने गुरुदेव को प्रणाम किया और कहा, “महाराज, आपके चरणों में आने से बड़ी शांति मिलती है।" महाराज ने कहा, “तो फिर क्यों जाते हो?" इस प्रश्न का क्या उत्तर हो सकता है ? सोचकर कहा, “महाराज, निरन्तर आपके सान्निध्य में रहने के योग्य मेरा सौभाग्य नहीं है। बिना पुण्य महापुरुषों के चरणों में निवास करने का भाग्य कहाँ ?" महाराज ने कहा, “तुम तो अपनी बात की वकालत करते हो।" मैंने कहा, "मैंने वकालत तो पास की, किन्तु वकालत कभी की ही नहीं। हाँ ! आपके धर्मपक्ष की ही वकालत करता हूँ।" सस्मित वदन से गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया। मैं रवाना हो गया। सन् १९४३ का सितम्बर माह १९४३ के सितम्बर में मैंने देखा, आचार्य महाराज मूल संस्कृत के ग्रंथों को बड़े ध्यान से बाँच रहे थे। देखा, तो मोती सरीखे मनोज्ञ अक्षरों में अलंकृत हस्तलिखित संस्कृत की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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